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"महीनों तक तुम्हारे प्यार में इसको पकाया है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

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21:32, 4 अप्रैल 2018 का अवतरण

महीनों तक तुम्हारे प्यार में इसको पकाया है।
तभी जाके ग़ज़ल पर ये गुलाबी रंग आया है।

अकेला देख जब जब सर्द रातों ने सताया है,
तुम्हारा प्यार ही मैंने सदा ओढ़ा बिछाया है।

किसी को साथ रखने भर से वो अपना नहीं होता,
जो मेरे दिल में रहता है हमेशा, वो पराया है।

तेरी नज़रों से मैं कुछ भी छुपा सकता नहीं हमदम,
बदन से रूह तक तेरे लिए सबकुछ नुमाया है।

कई दिन से उजाला रात भर सोने न देता था,
बहुत मजबूर होकर दीप यादों का बुझाया है।