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"पुल के ऊपर से जाते जो गहराई से घबराते हैं / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
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21:41, 4 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण
पुल के ऊपर से जाते जो गहराई से घबराते हैं।
पुल की रचना वो करते जो खाई के भीतर जाते हैं।
जिनसे है उम्मीद समय को वो पूँजी के सम्मोहन में,
काम गधे सा करते फिर शूकर सा खाकर सो जाते हैं।
जिनकी कोमलता की कसमें दुनिया खाती है वो सारे,
मज़्लूमों की बात चले तो फ़ौरन पत्थर हो जाते हैं।
धूप, हवा, जल, मिट्टी इनमें से कुछ भी यदि कम पड़ जाये,
नागफनी बढ़ते जंगल में नाज़ुक पौधे मुरझाते हैं।
जो थे भारी, ज्ञान-जलधि में डूब गये वो चुप्पी साधे,
हल्के लोग हमेशा जल में शोर मचाकर उतराते हैं।