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"जीने का या मरने का / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

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22:48, 4 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण

जीने का या मरने का।
ढंग अलग हो करने का।

सबका मूल्य बढ़ा लेकिन,
भाव गिरा है धरने का।

मुर्दों को सबसे ज़्यादा,
डर लगता है मरने का।

सिर्फ़ वोट देने भर से,
कुछ भी नहीं सुधरने का।

गिरने दो उसको ‘सज्जन’,
गिरना गुण है झरने का।