भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"उतर जाए अगर झूटी त्वचा तो / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='सज्जन' धर्मेन्द्र |संग्रह=पूँजी...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

22:48, 4 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण

उतर जाए अगर झूटी त्वचा तो।
सभी हैं एक से साबित हुआ, तो।

शरीअत में हुई झूठी कथा, तो।
न मर कर भी दिखा मुझको ख़ुदा, तो।

वो दोहों को ही दुनिया मानता है,
कहा गर जिंदगी ने सोरठा, तो।

जिसे मशरूम का हो मानते तुम,
किसी मज़्लूम का हो शोरबा, तो।

समझदारी है उससे दूर जाना,
अगर हो बैल कोई मरखना तो।

जिसे मस्जिद समझते हो मियाँ तुम
वही हो, हाँ वही हो मैकदा, तो।

न तुम ज़िन्दा न तुममें रूह ‘सज्जन’
किसी दिन गर यही साबित हुआ, तो।