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"आह निकलती है यह कटते पीपल से / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

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23:00, 4 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण

आह निकलती है यह कटते पीपल से।
बरसेगा तेज़ाब एक दिन बादल से।
 
माँगे उनसे रोज़गार कैसे कोई,
भरा हुआ मुँह सबका सस्ते चावल से।
 
क़ै हो जाएगी इसके नाज़ुक तन पर,
कैसे बनता है गर जाना मखमल से।
 
गाँव, गली, घर साफ नहीं रक्खोगे गर,
ख़ून चुसाना होगा मच्छर, खटमल से।
 
थे चुनाव पहले के वादे जुम्ले यदि,
तब तो सत्ता पाई है तुमने छल से।