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"इण धरती रै ऊजळ आंगण / महेन्द्रसिंह सिसोदिया 'छायण'" के अवतरणों में अंतर

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क्यूं खांचौ हो
धरम नांव री कूडी़ लीकां
क्यूं बिलमावौ
मिनख मिनख में
भेद जता नै
क्यूं फैलावौ
आज हल़ाहल़ धरम नांव रौ
क्यूंकर ठावौ
न्यारा-न्यारा
कूंतण रा मापीणा कूडा
हिंदू-मुस्लिम
ईसाई अर बौद्ध जैन रा!
क्यूं भटकावौ-
नैने नैने टाबरियां नै
गंगा-जमनी संस्कारां रै
पावन पथ सूं |

जदकै
इण धरती रै आंगण
गीत रचीज्या प्रेम-प्रीत रा
परंपरा-अपणायत रैयी
अणगिण पीढ्यां सागै बैठी
गांव-गौरवें
ढाणी-ढाणी
संबंधां रा बांध्यां तांतण |

वै ई तांतण-
जकौ बांधिया पुरखां अपणा
इतरा काचा व्है क्यूं तूटै?
किण कारण भारत रै भागां
धरम तणी तकदीरां मांडौ |

क्यूं भूलौ थै-
आज कबीरे री वाणी नै
जिण री वाणी--
सदियां तक गूंजैलां अपणी
इण धरती रै ऊजळ आंगण
क्यूंकर भूलौ-
रहीमन धागौ
प्रेम प्रीत रौ !!!
जदकै उणरा-
लोक कंठ में दूहा आछा
जीवत हैं,
जीवत रेवैलां सदियां तांई|

कींकर खोदो-
मिनखां बिच्चै खाई-खाडा !
जठै-
धरम सूं ऊपर उठनै
ब्रज काळिंदी गोकुल ग्वारन
सुणिया कई सवैया सांप्रत |
वौ रसखान-
स्याम रै रंग में
पूरौ रंगियो ऊजळ अंतस !
अर कैयौ कै-
'आठहुँ सिद्धि
नव निध रौ सुख ई
ब्रज की गाय चराई बिसारौ!'
कान्हा कान्हा करतां-करतां
जिकां सनातन रीतां राखी |
वां नै-
मत बांटो रै बीरा!
कूडी़ थोथी परिभासा में|

मत भूलौ कै-
हळदघाट रै रण-आंगण में
कितरा सूर हकीम जिसां नर
हिंदुवै सूरज सागै लड़िया|
कितरा मिटिया देस-धरम हित ?
कितरा अजलग सांसां जीवै-
उणी पंथ री
उणी रीत री |

एक'र फेरूं-
याद करौ उण पिच्छम वाळै
रूणीचै रै रामदेव नै
जिण नै सगळा
सांचैमन सूं ध्यावै-पूजै
अर सगळा ई-
पीरां रै जैकारां सागै
हिळमिळ रेवै
प्रीत वधावे!

कै जा देखो-
सिंध धरा में
पीर मोडियो कैय पूजीजै
छत्राळो आल्हो जसधारी
हिंदू अर मुसलमां सगळा
उण राहड़ पन्नड़ रै चरणां
श्रद्धा सूं ई शीश झुकावें |

कींकर भूलौ-
रतजागां में गातौ ढोली
ब्याव बधाणै आतौ ढाढी
अधरातां में झीणै-झीणै
मधरै-मधरै व़ायरियै में
रचतै मीठे लोक गीत नै
कींकर बांटो-
धरम पंथ री कांकड़ में इण
शहनाई सुरणाई ढोलक
मंजीरा झींझा तबला नै
अै साखी हैं संबंधां रा
अपणापै रा
मिनखापै अर विसवासां रा !!!

मत उळझावौ-
धरम नांव री कांकड़ में इण
हँसती- खिलती मिनखजात नै
मत बांधौ-
भौळे मिनखां नै तणकै खूंटे
मत राखौ-
ऊजळ अंतस में ऊंडी खोखा !!!