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"झूठ मिटता गया देखते-देखते / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

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तेरी तस्वीर तुझ से भी बेहतर लगी,
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कैसा जादू हुआ देखते-देखते ।
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बोल कर ये ज़बाँ जो नहीं कह सकी,
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आँख ने कह दिया देखते-देखते।
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रंग मुझपे गुलाबी गिरा इस क़दर,
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हो गया मैं हरा देखते-देखते।
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वो दिखाने पे आए जो अपनी अदा,
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मैं हुआ लापता देखते-देखते।
 
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22:28, 15 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण

झूठ मिटता गया देखते-देखते।
सच नुमायाँ हुआ देखते-देखते।

तेरी तस्वीर तुझ से भी बेहतर लगी,
कैसा जादू हुआ देखते-देखते ।

बोल कर ये ज़बाँ जो नहीं कह सकी,
आँख ने कह दिया देखते-देखते।

रंग मुझपे गुलाबी गिरा इस क़दर,
हो गया मैं हरा देखते-देखते।

वो दिखाने पे आए जो अपनी अदा,
मैं हुआ लापता देखते-देखते।