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"नमक में हींग में हल्दी में आ गई हो तुम / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
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22:32, 15 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण
नमक में हींग में हल्दी में आ गई हो तुम।
उदर की राह से धमनी में आ गई हो तुम।
मेरे दिमाग से दिल में उतर तो आई हो,
महल को छोड़ के झुग्गी में आ गई हो तुम।
ज़रा सा पी के ही तन मन नशे में झूम उठा,
क़सम से आज तो पानी में आ गई हो तुम।
हरे पहाड़, ढलानें, ये घाटियाँ गहरी,
लगा शिफॉन की साड़ी में आ गई हो तुम।
बदन पिघल के मेरा बह रहा सनम ऐसे,
ज्यूँ अब के बार की गर्मी में आ गई हो तुम।
चमक वही, वो गरजना, तुरंत ही बारिश,
खफ़ा हुई तो ज्यूँ बदली में आ गई हो तुम।