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08:30, 11 मई 2018 का अवतरण
1
मैं हूँ उद्गीत
भँवर से गाते हो
मुझे ओ मीत
2
मैं हूँ पाँखुरी
तुम रंग हो मेरा
सदैव संग
3
तुम प्रणव
मैं श्वासों की लय हूँ
तुम्हें ही जपूँ
4
प्रतीक्षारत
तापसी योगिनी मैं
तू योगीश्वर
5
शैल नदी -सी
प्रत्येक शिला पर
लिखा संघर्ष
6
प्रकृति आद्या
चेताये मानव को
तोड़ती भ्रम
7
दिग-दिगन्त
कुपित मानव से
फूटा रुदन
8
संध्या व भोर
ये प्रकृति नचाये
खींचती डोर
9
मद में चूर
मानव की पिपासा
प्रकृति दूर
10
उमड़े ज्वार
मन समंदर में
भाटा विचार
11
बाहर तूफाँ
मन के भीतर का
उससे भारी
12
मूल कारण
प्राकृतिक कोप का
अतिक्रमण
13
जो वीर वेश
तरु जूझे आँधी से
अब भी शेष
14
पाहन हूँ मैं
तुम हीरा कहते
प्रेम तुम्हारा
15
तुम हो शिल्पी
प्रतिमा बना डाली
मैं पत्थर थी
-०-