भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पुरानी यादें-2 / मनीषा पांडेय" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनीषा पांडेय }} कभी कोई नर्म हथेली बनकर तो कभी सूजे हुए...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
19:12, 12 जुलाई 2008 का अवतरण
कभी कोई नर्म हथेली बनकर
तो कभी सूजे हुए फफोलों का दर्द
ज़िंदा रहती हैं यादें
कहीं नहीं जातीं
जमकर बैठ जाती हैं छाती में
पूरी रात दुखता है सीना
आँखें सूजकर पहाड़ हो जाती हैं