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"पुरानी यादें-2 / मनीषा पांडेय" के अवतरणों में अंतर

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19:12, 12 जुलाई 2008 का अवतरण

कभी कोई नर्म हथेली बनकर

तो कभी सूजे हुए फफोलों का दर्द

ज़िंदा रहती हैं यादें

कहीं नहीं जातीं

जमकर बैठ जाती हैं छाती में

पूरी रात दुखता है सीना

आँखें सूजकर पहाड़ हो जाती हैं