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"जहाँ जी चाहे सीता जाये / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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जहाँ जी चाहे सीता जाये | जहाँ जी चाहे सीता जाये | ||
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बोले प्रभु लक्ष्मण से--'अब वह मुझको मुँह न दिखाये | बोले प्रभु लक्ष्मण से--'अब वह मुझको मुँह न दिखाये | ||
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'दुष्ट असुर से ठान लड़ाई | 'दुष्ट असुर से ठान लड़ाई | ||
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मैंने कुल की आन बचायी | मैंने कुल की आन बचायी | ||
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पर जो पर घर में रह आयी | पर जो पर घर में रह आयी | ||
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उसे कौन अपनाये! | उसे कौन अपनाये! | ||
'अवध उसे जो ले जाऊँगा | 'अवध उसे जो ले जाऊँगा | ||
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अपनी हँसी न करवाऊँगा! | अपनी हँसी न करवाऊँगा! | ||
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क्या उत्तर मैं दे पाऊँगा | क्या उत्तर मैं दे पाऊँगा | ||
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यदि जग दोष लगाये! | यदि जग दोष लगाये! | ||
चर्चा क्या न रहेगी छायी-- | चर्चा क्या न रहेगी छायी-- | ||
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जाने कैसे अवधि बितायी! | जाने कैसे अवधि बितायी! | ||
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जो कंचन-मृग पर ललचायी | जो कंचन-मृग पर ललचायी | ||
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लंका उसे न भाये!" | लंका उसे न भाये!" | ||
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जहाँ जी चाहे सीता जाये' | जहाँ जी चाहे सीता जाये' | ||
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बोले प्रभु लक्ष्मण से--'अब वह मुझको मुँह न दिखाये | बोले प्रभु लक्ष्मण से--'अब वह मुझको मुँह न दिखाये | ||
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14:38, 19 मई 2018 का अवतरण
चाँदनी
रचनाकार | गुलाब खंडेलवाल |
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प्रकाशक | |
वर्ष | |
भाषा | हिन्दी |
विषय | |
विधा | गीत |
पृष्ठ | |
ISBN | |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
जहाँ जी चाहे सीता जाये
बोले प्रभु लक्ष्मण से--'अब वह मुझको मुँह न दिखाये
'दुष्ट असुर से ठान लड़ाई
मैंने कुल की आन बचायी
पर जो पर घर में रह आयी
उसे कौन अपनाये!
'अवध उसे जो ले जाऊँगा
अपनी हँसी न करवाऊँगा!
क्या उत्तर मैं दे पाऊँगा
यदि जग दोष लगाये!
चर्चा क्या न रहेगी छायी--
जाने कैसे अवधि बितायी!
जो कंचन-मृग पर ललचायी
लंका उसे न भाये!"
जहाँ जी चाहे सीता जाये'
बोले प्रभु लक्ष्मण से--'अब वह मुझको मुँह न दिखाये
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