भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"भिक्षुक / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
| (2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
| पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
{{KKPrasiddhRachna}} | {{KKPrasiddhRachna}} | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
| − | वह आता-- | + | <poem> |
| − | दो टूक कलेजे | + | वह आता-- |
| − | पथ पर आता। | + | दो टूक कलेजे को करता, पछताता |
| + | पथ पर आता। | ||
| − | पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक, | + | पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक, |
| − | चल रहा लकुटिया टेक, | + | चल रहा लकुटिया टेक, |
| − | मुट्ठी भर दाने को | + | मुट्ठी भर दाने को — भूख मिटाने को |
| − | मुँह फटी पुरानी झोली का फैलाता | + | मुँह फटी पुरानी झोली का फैलाता — |
| − | दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता। | + | दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता। |
| − | साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ | + | साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाए, |
| − | + | बाएँ से वे मलते हुए पेट को चलते, | |
| − | और दाहिना दया दृष्टि-पाने की ओर | + | और दाहिना दया दृष्टि-पाने की ओर बढ़ाए। |
| − | भूख से सूख ओठ जब जाते | + | भूख से सूख ओठ जब जाते |
| − | दाता-भाग्य विधाता से क्या पाते? | + | दाता-भाग्य विधाता से क्या पाते? |
| − | घूँट आँसुओं के पीकर रह जाते। | + | घूँट आँसुओं के पीकर रह जाते। |
| − | चाट रहे जूठी पत्तल वे सभी सड़क पर खड़े हुए, | + | चाट रहे जूठी पत्तल वे सभी सड़क पर खड़े हुए, |
| − | और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए! | + | और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए ! |
| + | |||
| + | ठहरो ! अहो मेरे हृदय में है अमृत, मैं सींच दूँगा | ||
| + | अभिमन्यु जैसे हो सकोगे तुम | ||
| + | तुम्हारे दुख मैं अपने हृदय में खींच लूँगा। | ||
16:41, 19 मई 2018 के समय का अवतरण
वह आता--
दो टूक कलेजे को करता, पछताता
पथ पर आता।
पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक,
चल रहा लकुटिया टेक,
मुट्ठी भर दाने को — भूख मिटाने को
मुँह फटी पुरानी झोली का फैलाता —
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।
साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाए,
बाएँ से वे मलते हुए पेट को चलते,
और दाहिना दया दृष्टि-पाने की ओर बढ़ाए।
भूख से सूख ओठ जब जाते
दाता-भाग्य विधाता से क्या पाते?
घूँट आँसुओं के पीकर रह जाते।
चाट रहे जूठी पत्तल वे सभी सड़क पर खड़े हुए,
और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए !
ठहरो ! अहो मेरे हृदय में है अमृत, मैं सींच दूँगा
अभिमन्यु जैसे हो सकोगे तुम
तुम्हारे दुख मैं अपने हृदय में खींच लूँगा।

