भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatDalitRachna}}
<poem>
बयाँ बया के घोंसले को
जैसे तितर-बितर कर देता है
छलाँग लगाकर
चौपट
और अपारदर्शी
घुलमिल घुल-मिल जाते हैं उसमें
अकुला देनेवाला अतीत
और
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,340
edits