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"मेरी हमबिस्तरसे / साहिल परमार" के अवतरणों में अंतर
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15:42, 21 मई 2018 के समय का अवतरण
बया के घोंसले को
जैसे तितर-बितर कर देता है
छलाँग लगाकर
बन्दर
बस, वैसे ही
अर्थव्यवस्था की आँधी
हड़बड़ा देती है कभी
जतन से बिछाए गए
हमारे
बिस्तर को।
बिस्तर के साथ-साथ
हमारे जिस्मों में भी
पड़ जाती हैं
सिलवटों पर सिलवटें
और
पारगी आग जलाए और
उड़ जाएँ मधुमक्खियाँ
बस वैसे ही
मधु संचित करने को तत्पर
हमारे जिस्म से
हरी-हरी मक्खियाँ
हो जाती हैं
नदारद।
रह जाते हैं
आइने की
उलटी बाजू जैसे
हमारे चेहरे
चौपट
और अपारदर्शी
घुल-मिल जाते हैं उसमें
अकुला देनेवाला अतीत
और
झुलसता भविष्य।
मूल गुजराती से अनुवाद : स्वयं साहिल परमार