भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(13)
सांग:– चमन ऋषि – सुकन्या & (अनुक्रमांक – 1 )
ब्रहमा बैठे फूल कमल पै, सोचण लागे मन के म्हां,
आई आवाज समुन्द्र मै तै, करो तपस्या बण के म्हा ।। टेक ।।म्हा॥टेक॥
तप मेरा शरीर तप मेरी बुद्धि, तप से अन्न भोग किया करूं,
तप से प्रसन्न होके दर्शन, भगतजनों नै दिया करूं,
मै अलख निरंजन अंतरयामी, तप कै सहारै जिया करूं,
तप से परमजोत अराधना, तप से बंधू वचन के म्हां।।म्हां॥
तप मेरा रूप तप मेरी भगती, तप तै सत अजमाया करूं,
कोए तपै मार मन इन्द्री जीतै, जिब टोहे तै पाया करूं,
मै ब्रहमा मै विष्णु तप से, मै शिवजी कहलाया करूं,
निराकार साकार तप तै, व्यापक जड़-चेतन के म्हा।।म्हा॥
शिश तै स्वर्ग चरण से धरती, नाभी से असमान रचूं,
तप से क्रोध क्रोध से प्रलय, तप तै तीन जिहान रचूं,
तप से मनु देवता निश्चर, साधू संत सुजान रचूं,
पीठ से पाप गुदा से मृत्यु, जाम्या सोए मरण के म्हां।।म्हां॥
मै नहीं किसे कै धोरै रहता, नहीं किसे तै न्यारा सूं,
नहीं किसे नै दुःख सुख देता, नहीं किसे का सहारा सूं,
राजेराम कर्म करता, फल वैसा देणेहारा सूं,
तप से राज धर्म से लक्ष्मी, मुक्ति हरि भजन के म्हां।।म्हां॥
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader, प्रबंधक
35,103
edits