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"लोहार के बारे में / राकेश रंजन" के अवतरणों में अंतर

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वन्दे मातरम् !
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तुम लोहार को जानते हो न, कवि?
बीच सड़क पण्डाल बनेगा
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जो भी हो हर हाल बनेगा
+
जैकारा हरकिरतन होगा
+
निसदिन व्योम-प्रकंपन होगा
+
इसीलिए तो घर-घर जाकर
+
माँग रहे हैं
+
चन्दे मातरम् !
+
  
गुण्डागर्दी दुश्चरित्रता
+
जानते हो
हमें इनका नाम भी पता
+
कि जीवन के औजार
सदा दूध के धुले हुए हम
+
उसकी भट्ठी में लेते हैं कैसे आकार?
देश-धरम को तुले हुए हम
+
जो हमको गन्दा कहते हैं
+
वे तो ख़ुद हैं
+
गन्दे मातरम् !
+
  
जिनसे भारत-भूमि उदासी
+
जानते हो न
म्लेच्छ अवर्ण तथा वनवासी
+
किस आँच के साँचे में ढलती है लोहार की छवि?
कुलच्छनी निर्लज्ज नारियाँ
+
तुम्हारी छवि
रचनाकारों की कुठारियाँ
+
किस साँचे में ढलती है, कवि?
सबको हम चौरस कर देंगे
+
मार-मारकर
+
रन्दे मातरम् !
+
  
भारत हिन्दुस्थान हमारा
+
तुमने सुनी है न
भगवा संघ-विधान हमारा
+
सन्नाटे को चीरती, दिशाओं को धड़काती
हमीं महत्तम लट्ठ नचाते
+
दूर तक जाती
हमीं जगत्-सर्वोत्तम, माते
+
उसके घन की ठनकती आवाज?
सिवा हमारे जो हैं सब हैं
+
कहाँ तक सुनाई देता है
तव चरणों के
+
तुम्हारे शब्दों का साज?
फन्दे मातरम् !
+
 
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तुमने सुनी है न वह कहावत
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कि तभी तक चलेगी लोहार की साँस
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जब तक चलेगी उसकी भाँथी?
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मेरे साथी!
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क्या तुम अपनी बाबत
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कह सकते हो
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ऐसी ही एक कहावत?
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बता सकते हो
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कि लोहार के सपने किस आग में जलते हैं
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जिसके बाद उसकी भट्ठी में
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कुदाल के बदले
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कट्टे ढलते हैं?
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एक लोहार की भविता को
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तुम जानते हो न, कवि?
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सच कहना, अपनी कविता को
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तुम जानते हो न, कवि?
 
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17:38, 23 मई 2018 के समय का अवतरण

तुम लोहार को जानते हो न, कवि?

जानते हो न
कि जीवन के औजार
उसकी भट्ठी में लेते हैं कैसे आकार?

जानते हो न
किस आँच के साँचे में ढलती है लोहार की छवि?
तुम्हारी छवि
किस साँचे में ढलती है, कवि?

तुमने सुनी है न
सन्नाटे को चीरती, दिशाओं को धड़काती
दूर तक जाती
उसके घन की ठनकती आवाज?
कहाँ तक सुनाई देता है
तुम्हारे शब्दों का साज?

तुमने सुनी है न वह कहावत
कि तभी तक चलेगी लोहार की साँस
जब तक चलेगी उसकी भाँथी?
मेरे साथी!

क्या तुम अपनी बाबत
कह सकते हो
ऐसी ही एक कहावत?
बता सकते हो
कि लोहार के सपने किस आग में जलते हैं
जिसके बाद उसकी भट्ठी में
कुदाल के बदले
कट्टे ढलते हैं?

एक लोहार की भविता को
तुम जानते हो न, कवि?
सच कहना, अपनी कविता को
तुम जानते हो न, कवि?