"लुकमान अली-10 / सौमित्र मोहन" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{KKRachna |रचनाकार=सौमित्र मोहन |अनुवादक= |संग्रह=लुकमान...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | लुकमान अली ब्लैक-आउट में शब्दकोश लेकर पहरा देता | + | लुकमान अली ब्लैक-आउट में शब्दकोश लेकर पहरा देता है। |
− | वह लोगों की बातचीत समझने के लिए जल्दी-जल्दी पृष्ठ उलटता रहता | + | वह लोगों की बातचीत समझने के लिए जल्दी-जल्दी पृष्ठ उलटता रहता है। |
वह हमेशा एक फंदा लेकर | वह हमेशा एक फंदा लेकर | ||
घूमता है : जब वह छोटा था | घूमता है : जब वह छोटा था | ||
− | तो इसे 'धंधा' बोलता | + | तो इसे 'धंधा' बोलता था। |
सही शब्दों की गलत पहचान को वह दूरबीन से देखता हुआ अपनी उम्र के | सही शब्दों की गलत पहचान को वह दूरबीन से देखता हुआ अपनी उम्र के | ||
तीस साल पसीने से भीगी मुट्ठियों में रोक लेता है । वह सड़क के बीचोंबीच | तीस साल पसीने से भीगी मुट्ठियों में रोक लेता है । वह सड़क के बीचोंबीच | ||
− | एक शीशा फेंककर पीछे से आती सवारियों को देख रहा | + | एक शीशा फेंककर पीछे से आती सवारियों को देख रहा है। |
॥लु॥क॥ मा॥ न॥ अ।ली॥ ती॥ र॥ की॥ त॥ र॥ ह॥॥ बि॥ ना॥ | ॥लु॥क॥ मा॥ न॥ अ।ली॥ ती॥ र॥ की॥ त॥ र॥ ह॥॥ बि॥ ना॥ | ||
पंक्ति 20: | पंक्ति 20: | ||
वह अपने पीले पाजामे को खेतों के बीच टाँग देता है और मंत्रियों के दलों की | वह अपने पीले पाजामे को खेतों के बीच टाँग देता है और मंत्रियों के दलों की | ||
− | राह देखने लगता | + | राह देखने लगता है। वह लाल पाजामे को कॉफी हाऊस में लटकाता है |
− | और रातोंरात सब कुछ बदल जाने का सपना देखने लगता | + | और रातोंरात सब कुछ बदल जाने का सपना देखने लगता है। |
वह नीले पाजामे को सीमा की चौकियों में गाड़ देता है और | वह नीले पाजामे को सीमा की चौकियों में गाड़ देता है और | ||
वीरता के कारनामों की किताबें खरीदने के लिए लाईन में लग जाता है । | वीरता के कारनामों की किताबें खरीदने के लिए लाईन में लग जाता है । | ||
वह काले पाजामे को अकादेमियों के पीछे फेंक आता है और टोने की तरह | वह काले पाजामे को अकादेमियों के पीछे फेंक आता है और टोने की तरह | ||
− | असर होते देखना चाहता | + | असर होते देखना चाहता है। |
− | खुद नंगा होकर वह एक चट्टान पर लेटा | + | खुद नंगा होकर वह एक चट्टान पर लेटा है। आप जानते हैं कि वह |
बचपन के उस लौन्डे की याद कर रहा है जो भूतों की कहानियाँ पढ़ | बचपन के उस लौन्डे की याद कर रहा है जो भूतों की कहानियाँ पढ़ | ||
− | कर घंटों छिपा रहता | + | कर घंटों छिपा रहता था। |
लुकमान अली किसी भी चीज को नहीं बदल सकता : अपने को भी | लुकमान अली किसी भी चीज को नहीं बदल सकता : अपने को भी | ||
− | + | नहीं। वह सिर्फ इंतजार कर रहा है । वह 'इंतजार की व्यर्थता' के मुहावरे | |
को जानता है। वह काँच को फुलाकर उससे | को जानता है। वह काँच को फुलाकर उससे | ||
− | एक सैनिक बना रहा | + | एक सैनिक बना रहा है। वह उसे चुटकुले सुनाएगा और खुद ही से हँसता |
− | हुआ दराजों से नाड़े निकालने | + | हुआ दराजों से नाड़े निकालने लगेगा। |
− | वह बाहर लुकमान अली है और भीतर अंधा | + | वह बाहर लुकमान अली है और भीतर अंधा तहखाना। वह तहखाने की फन्तासी |
− | में सभी कुछ देख रहा | + | में सभी कुछ देख रहा है। वह सीढ़ियों से उतरता हुआ नब्ज टोह रहा है । |
जिसे आप मनोरोग कहते हैं | जिसे आप मनोरोग कहते हैं | ||
− | वह उसे देश का दुर्भाग्य कहता | + | वह उसे देश का दुर्भाग्य कहता है। |
लुकमान अली सहमति नहीं चाहता : वह कटी उंगली पर नमक लगाकर लोगों | लुकमान अली सहमति नहीं चाहता : वह कटी उंगली पर नमक लगाकर लोगों | ||
− | को कवच पहना रहा | + | को कवच पहना रहा है। |
− | वह उन्हें अपने को बचाते हुए देखना चाहता | + | वह उन्हें अपने को बचाते हुए देखना चाहता है। तब आदमी कितना बदशक्ल |
− | हो जाता है—वह अच्छी तरह जानता | + | हो जाता है—वह अच्छी तरह जानता है। |
गीली तीलियों से | गीली तीलियों से | ||
− | आग लगाता हुआ लुकमान अली भाग रहा | + | आग लगाता हुआ लुकमान अली भाग रहा है। |
उसे पनाह देने के लिए न कोई मकान खाली है, न कोई जंगल, | उसे पनाह देने के लिए न कोई मकान खाली है, न कोई जंगल, | ||
− | न कोई पुराना कोट और न कोई | + | न कोई पुराना कोट और न कोई दाढ़ी। |
वह अपने पाजामों से पहचान लिया जाता है । | वह अपने पाजामों से पहचान लिया जाता है । | ||
वह नीचे झुककर आदमियों की कतार के साथ-साथ मीलों | वह नीचे झुककर आदमियों की कतार के साथ-साथ मीलों | ||
− | चला जाता | + | चला जाता है। वह वहाँ खड़ा हो जाता है |
− | जहाँ पुलिस धड़-पकड़ में बहुत अधिक सक्रिय | + | जहाँ पुलिस धड़-पकड़ में बहुत अधिक सक्रिय है। |
− | और थोड़ी ही देर में वह एक 'दृश्य' बन जाता | + | और थोड़ी ही देर में वह एक 'दृश्य' बन जाता है। |
वह जानता है कि लोग तब ईमानदार नहीं होते जब | वह जानता है कि लोग तब ईमानदार नहीं होते जब | ||
− | वे नौकरियों की छ्लाँग लगा रहे होते | + | वे नौकरियों की छ्लाँग लगा रहे होते हैं। |
वह उनकी पसलियों में रेंगती चापलूसी को अमर बनाकर | वह उनकी पसलियों में रेंगती चापलूसी को अमर बनाकर | ||
− | हमेशा के लिए भाग जाना चाहता | + | हमेशा के लिए भाग जाना चाहता है। |
प्रदर्शनों के ऊपर उड़ते हुए हेलिकॉप्टर और टिड्डियां और पर्चे और पाजामे | प्रदर्शनों के ऊपर उड़ते हुए हेलिकॉप्टर और टिड्डियां और पर्चे और पाजामे | ||
पंक्ति 87: | पंक्ति 87: | ||
और और | और और | ||
− | लुकमान अली इन्हीं के नीचे से भाग रहा | + | लुकमान अली इन्हीं के नीचे से भाग रहा है। वह प्रदर्शनों |
− | का हिस्सा होकर भी और से आतंकित | + | का हिस्सा होकर भी और से आतंकित है। वह अपने |
− | पाजामों का छाता बना कर सभी कुछ सह रहा | + | पाजामों का छाता बना कर सभी कुछ सह रहा है। वह |
− | झोली और डोली और लोली के तुकों में 'साकेत' खोज रहा | + | झोली और डोली और लोली के तुकों में 'साकेत' खोज रहा है। |
लुकमान अली विशाल जनसभा के बीच में से धकेला जा रहा | लुकमान अली विशाल जनसभा के बीच में से धकेला जा रहा | ||
− | है । वह अभी-अभी छ्तें फलाँगता रहा | + | है । वह अभी-अभी छ्तें फलाँगता रहा था। वह अपने पाजामों |
− | के शौर्य से भ्रमित करता रहा | + | के शौर्य से भ्रमित करता रहा था। वह जानता है कि उसकी |
− | नियति का किसी को भी पता नहीं | + | नियति का किसी को भी पता नहीं है। |
लुकमान अली खुले गटर में खड़ा होकर राष्ट्र की सेवा कर रहा | लुकमान अली खुले गटर में खड़ा होकर राष्ट्र की सेवा कर रहा | ||
− | है और उसे इसका पता नहीं | + | है और उसे इसका पता नहीं है। |
कविता पश्चात का वक्तव्य : | कविता पश्चात का वक्तव्य : | ||
− | 'लुकमाल अली' आटो-राइटिंग नहीं | + | 'लुकमाल अली' आटो-राइटिंग नहीं है। मैं इसे लिखने के लिए पाँच महीनों तक 'घबड़ाया' रहा हूं। 'लुकमान अली' की स्थितियों का सामना करते ही मुझमें से वे मनोवैज्ञानिक भय दूर होते रहे हैं जो बचपन से मेरा पीछा करते रहे हैं। मैं इसे अर्ध-जीवनीपरक कविता कह सकता हूं । |
− | 'लुकमान अली' मेरे लिए मात्र प्रतीक नहीं है — इसकी शारीरिक सत्ता है; फन्तासी की सत्ता है और मैं समझता हूं कि आज कविता में 'बुरे दिनों' का चित्रण या प्रतिक्रिया या एनकाउन्टर इसी फन्तासी से किया जा सकता | + | 'लुकमान अली' मेरे लिए मात्र प्रतीक नहीं है — इसकी शारीरिक सत्ता है; फन्तासी की सत्ता है और मैं समझता हूं कि आज कविता में 'बुरे दिनों' का चित्रण या प्रतिक्रिया या एनकाउन्टर इसी फन्तासी से किया जा सकता है। इसी माध्यम से आज के अयथार्थ जैसे लगने वाले परिवेश में अपने जीवित होने को समझा जा सकता है। |
− | यह नहीं कि आज का जीवन या कविता 'सार्थक खोज' हो सकती है : विसंगति के नाटक में दर्शक होने के सिवा कुछ नहीं किया जा | + | यह नहीं कि आज का जीवन या कविता 'सार्थक खोज' हो सकती है : विसंगति के नाटक में दर्शक होने के सिवा कुछ नहीं किया जा सकता। मैं अपने व्यक्तिगत अनुभव से जानता हूँ कि आज का सबसे प्रिय 'जादू' कमीनेपन का जादू है और लोग उसमें अत्यधिक पारंगत होने कि लिए हर नैतिक बोध से छूटने की भरसक कोशिश करते हैं। यह एक अनचाही यंत्रणा है और उसके प्रभाव से हर चीज दूर खिसकती हुई दु:स्वप्न में बदल जाती है; और दु:स्वप्न में जाग्रत जीवन के नियम लागू नहीं होते। वहाँ आप अपने को दफन किए जाते देखते हैं, लेकिन कर कुछ नहीं सकते। 'लुकमान अली' काव्य चेतना का आरम्भ और अंत इसी दु:स्वप्न में कहीं ठहरा हुआ है। |
</poem> | </poem> |
18:42, 24 मई 2018 के समय का अवतरण
लुकमान अली ब्लैक-आउट में शब्दकोश लेकर पहरा देता है।
वह लोगों की बातचीत समझने के लिए जल्दी-जल्दी पृष्ठ उलटता रहता है।
वह हमेशा एक फंदा लेकर
घूमता है : जब वह छोटा था
तो इसे 'धंधा' बोलता था।
सही शब्दों की गलत पहचान को वह दूरबीन से देखता हुआ अपनी उम्र के
तीस साल पसीने से भीगी मुट्ठियों में रोक लेता है । वह सड़क के बीचोंबीच
एक शीशा फेंककर पीछे से आती सवारियों को देख रहा है।
॥लु॥क॥ मा॥ न॥ अ।ली॥ ती॥ र॥ की॥ त॥ र॥ ह॥॥ बि॥ ना॥
छु॥ ए॥ व॥ हाँ॥ से॥ गु॥ ज ॥र॥ जा॥ ता॥ है॥ ज॥ हाँ ॥रो॥ श ॥नी॥ न॥ हीं ॥ है॥
वह अपने पीले पाजामे को खेतों के बीच टाँग देता है और मंत्रियों के दलों की
राह देखने लगता है। वह लाल पाजामे को कॉफी हाऊस में लटकाता है
और रातोंरात सब कुछ बदल जाने का सपना देखने लगता है।
वह नीले पाजामे को सीमा की चौकियों में गाड़ देता है और
वीरता के कारनामों की किताबें खरीदने के लिए लाईन में लग जाता है ।
वह काले पाजामे को अकादेमियों के पीछे फेंक आता है और टोने की तरह
असर होते देखना चाहता है।
खुद नंगा होकर वह एक चट्टान पर लेटा है। आप जानते हैं कि वह
बचपन के उस लौन्डे की याद कर रहा है जो भूतों की कहानियाँ पढ़
कर घंटों छिपा रहता था।
लुकमान अली किसी भी चीज को नहीं बदल सकता : अपने को भी
नहीं। वह सिर्फ इंतजार कर रहा है । वह 'इंतजार की व्यर्थता' के मुहावरे
को जानता है। वह काँच को फुलाकर उससे
एक सैनिक बना रहा है। वह उसे चुटकुले सुनाएगा और खुद ही से हँसता
हुआ दराजों से नाड़े निकालने लगेगा।
वह बाहर लुकमान अली है और भीतर अंधा तहखाना। वह तहखाने की फन्तासी
में सभी कुछ देख रहा है। वह सीढ़ियों से उतरता हुआ नब्ज टोह रहा है ।
जिसे आप मनोरोग कहते हैं
वह उसे देश का दुर्भाग्य कहता है।
लुकमान अली सहमति नहीं चाहता : वह कटी उंगली पर नमक लगाकर लोगों
को कवच पहना रहा है।
वह उन्हें अपने को बचाते हुए देखना चाहता है। तब आदमी कितना बदशक्ल
हो जाता है—वह अच्छी तरह जानता है।
गीली तीलियों से
आग लगाता हुआ लुकमान अली भाग रहा है।
उसे पनाह देने के लिए न कोई मकान खाली है, न कोई जंगल,
न कोई पुराना कोट और न कोई दाढ़ी।
वह अपने पाजामों से पहचान लिया जाता है ।
वह नीचे झुककर आदमियों की कतार के साथ-साथ मीलों
चला जाता है। वह वहाँ खड़ा हो जाता है
जहाँ पुलिस धड़-पकड़ में बहुत अधिक सक्रिय है।
और थोड़ी ही देर में वह एक 'दृश्य' बन जाता है।
वह जानता है कि लोग तब ईमानदार नहीं होते जब
वे नौकरियों की छ्लाँग लगा रहे होते हैं।
वह उनकी पसलियों में रेंगती चापलूसी को अमर बनाकर
हमेशा के लिए भाग जाना चाहता है।
प्रदर्शनों के ऊपर उड़ते हुए हेलिकॉप्टर और टिड्डियां और पर्चे और पाजामे
और लाशें और टोपियाँ और बेलावादक और छ्पे हुए भाषण और गौएँ और
कविताएँ और मुखौटे और नेता और कुर्सियाँ और झगड़े और लफड़े
और तालाबन्दी और रेलें और अणुबम और लाठियाँ और राइफलें
और भूख हड़ताल और व्यावसायिक अखबार और लड़कियाँ और जूते और
अंडे और पुरस्कार और विदेश यात्राएँ और नौकरशाही और रिश्वतें
और प्रजातंत्र और अश्लीलता और आलोचकों के पुतले और विश्वविद्यालय
और विदेशी आक्रमण और संस्कृति और भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद
और सुअर और होटल और युवा चित्रकार और अंधेरा और चीखें और
बलात्कार और डाके और सड़क बंद और चिकित्सालय और सीमाएँ और
और और और और और और और और और और और और और और और
और और और और और और और और और और और और और और और
और और और और और और और और
और और और और और और और और
और और
और और
और और और और
और और और और और और
और और और और और और और और
और और और और और और और और और और
और और और और और और और और
और और और और और और
और और और और
और और
और और
लुकमान अली इन्हीं के नीचे से भाग रहा है। वह प्रदर्शनों
का हिस्सा होकर भी और से आतंकित है। वह अपने
पाजामों का छाता बना कर सभी कुछ सह रहा है। वह
झोली और डोली और लोली के तुकों में 'साकेत' खोज रहा है।
लुकमान अली विशाल जनसभा के बीच में से धकेला जा रहा
है । वह अभी-अभी छ्तें फलाँगता रहा था। वह अपने पाजामों
के शौर्य से भ्रमित करता रहा था। वह जानता है कि उसकी
नियति का किसी को भी पता नहीं है।
लुकमान अली खुले गटर में खड़ा होकर राष्ट्र की सेवा कर रहा
है और उसे इसका पता नहीं है।
कविता पश्चात का वक्तव्य :
'लुकमाल अली' आटो-राइटिंग नहीं है। मैं इसे लिखने के लिए पाँच महीनों तक 'घबड़ाया' रहा हूं। 'लुकमान अली' की स्थितियों का सामना करते ही मुझमें से वे मनोवैज्ञानिक भय दूर होते रहे हैं जो बचपन से मेरा पीछा करते रहे हैं। मैं इसे अर्ध-जीवनीपरक कविता कह सकता हूं ।
'लुकमान अली' मेरे लिए मात्र प्रतीक नहीं है — इसकी शारीरिक सत्ता है; फन्तासी की सत्ता है और मैं समझता हूं कि आज कविता में 'बुरे दिनों' का चित्रण या प्रतिक्रिया या एनकाउन्टर इसी फन्तासी से किया जा सकता है। इसी माध्यम से आज के अयथार्थ जैसे लगने वाले परिवेश में अपने जीवित होने को समझा जा सकता है।
यह नहीं कि आज का जीवन या कविता 'सार्थक खोज' हो सकती है : विसंगति के नाटक में दर्शक होने के सिवा कुछ नहीं किया जा सकता। मैं अपने व्यक्तिगत अनुभव से जानता हूँ कि आज का सबसे प्रिय 'जादू' कमीनेपन का जादू है और लोग उसमें अत्यधिक पारंगत होने कि लिए हर नैतिक बोध से छूटने की भरसक कोशिश करते हैं। यह एक अनचाही यंत्रणा है और उसके प्रभाव से हर चीज दूर खिसकती हुई दु:स्वप्न में बदल जाती है; और दु:स्वप्न में जाग्रत जीवन के नियम लागू नहीं होते। वहाँ आप अपने को दफन किए जाते देखते हैं, लेकिन कर कुछ नहीं सकते। 'लुकमान अली' काव्य चेतना का आरम्भ और अंत इसी दु:स्वप्न में कहीं ठहरा हुआ है।