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एक ऐसे गुलाब की
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जिसके साथ कण्टक न हो;
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एक ऐसे कमल की
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जिसका उद्गम पंक न हो;
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जिसमें लिपटा भुजंग न हो;
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जिसके भाल पर कलंक न हो;
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जिसका  अंधकार में विलय न हो;
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जिसका सागर में अन्त न हो;
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जिसका क्षितिज अनन्त न हो;
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जो कभी अस्त न हो;
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एक ऐसे जीवन की
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जो मृत्यु से परास्त न हो;
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एक ऐसे यौवन की
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जो जरा से जर्जर न हो;
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एक ऐसे तन की
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जो नश्वर न हो;
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एक ऐसी आत्मा की
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जो निराकार न हो;
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एक ऐसे समाज की
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जिसमें वर्ग प्रकार न हो;
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एक ऐसे  राष्ट्र की
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जिसमें सीमाओं का आधार न हो;
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मैं करता हूँ इच्छाएँ ऐसी
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क्योंकि मैं बचाना चाहता हूँ
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पहचान सब की;
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मैं अक्सर पूछता हूँ
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सर्वशक्तिमान रचयिता से―
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क्यों वह रचता नहीं
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वस्तुएँ ऐसी?
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और मैं कह सकता हूँ
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मानवी गर्व से―
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यहाँ हार गया है सर्वशक्तिमान!
  
 
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14:02, 29 मई 2018 के समय का अवतरण


मेरे उर में है
अतृप्य इच्छा―

एक ऐसे गुलाब की
जिसके साथ कण्टक न हो;

एक ऐसे कमल की
जिसका उद्गम पंक न हो;

एक ऐसे संदल की
जिसमें लिपटा भुजंग न हो;

एक ऐसे चन्द्र की
जिसके भाल पर कलंक न हो;

एक ऐसे पूर्णचन्द्र की
जिसका कभी क्षय न हो;

एक ऐसे दिवस की
जिसका अंधकार में विलय न हो;

एक ऐसे नद की
जिसका सागर में अन्त न हो;

एक ऐसे नभ की
जिसका क्षितिज अनन्त न हो;

एक ऐसे सूर्य की
जो कभी अस्त न हो;

एक ऐसे जीवन की
जो मृत्यु से परास्त न हो;

एक ऐसे यौवन की
जो जरा से जर्जर न हो;

एक ऐसे तन की
जो नश्वर न हो;

एक ऐसी आत्मा की
जो निराकार न हो;

एक ऐसे समाज की
जिसमें वर्ग प्रकार न हो;

एक ऐसे राष्ट्र की
जिसमें सीमाओं का आधार न हो;

मैं करता हूँ इच्छाएँ ऐसी
क्योंकि मैं बचाना चाहता हूँ
पहचान सब की;

मैं अक्सर पूछता हूँ
सर्वशक्तिमान रचयिता से―
क्यों वह रचता नहीं
वस्तुएँ ऐसी?

और मैं कह सकता हूँ
मानवी गर्व से―
यहाँ हार गया है सर्वशक्तिमान!