भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"वह क्या नदी थी... / धनंजय वर्मा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धनंजय वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=नीम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 25: | पंक्ति 25: | ||
बन्द एक तालाब से निकली | बन्द एक तालाब से निकली | ||
और दुसरे में समो गई | और दुसरे में समो गई | ||
− | वह क्या नदी थी... | + | वह क्या नदी थी... ? |
</poem> | </poem> |
19:09, 5 जून 2018 के समय का अवतरण
होता है एक दरख़्त समूचा
कटता है तो अरअरा के गिर पड़ता है
भीतर ही भीतर या सूख के
नंगी बाँहें तान देता है आसमान में
नाक़ाबिले बर्दाश्त है, नामुमकिन है भूलना
अपनी जड़ें उसके लिए।
नहीं है, कुछ भी नहीं है
न शिकवा, न शिकायत
है तो महज़
इक क़स्बे की वीरान दोपहर की उदास ख़ामोशी है,
काई और सिंवार की बिसायन्ध है
सूख गई है
पारदर्शी जल की आक्षितिजी फैली नदी !
बन्द एक तालाब से निकली
और दुसरे में समो गई
वह क्या नदी थी... ?