भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"उतर पेड़ तै लकड़हारे, मै कद की रूक्के देरी / राजेराम भारद्वाज" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेराम भारद्वाज |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
{{KKCatHaryanaviRachna}}
 
{{KKCatHaryanaviRachna}}
 
<poem>
 
<poem>
वार्ता:- सज्जनों! फिर सखियों के कहने से सत्यवान नहीं बोलता है और न ही पेड़ से उतरता। तभी सावित्री पास मे आती है और उसको बार-बार बोलती रहती है। आखिरकार सावित्री फिर एक बार सत्यवान को कैसे पुकारती है।
+
सांग:- सत्यवान-सावित्री (अनुक्रमांक-8)
  
जवाब - सावित्री का सत्यवान से।     (8)
+
'''वार्ता:-''' सज्जनों! फिर सखियों के कहने से सत्यवान नहीं बोलता है और न ही पेड़ से उतरता। तभी सावित्री पास मे आती है और उसको बार-बार बोलती रहती है। आखिरकार सावित्री फिर एक बार सत्यवान को कैसे पुकारती है।
 +
 
 +
जवाब - सावित्री का सत्यवान से।    
  
 
'''उतर पेड़ तै लकड़हारे, मै कद की रूक्के देरी,'''
 
'''उतर पेड़ तै लकड़हारे, मै कद की रूक्के देरी,'''
'''घणी दूर तै चलकै आई, बात बुझले मेरी ।।'''
+
'''घणी दूर तै चलकै आई, बात बुझले मेरी ।। टेक ||'''
  
 
माणस धोरै माणस आज्या, चलकै नै बे-जाणी,
 
माणस धोरै माणस आज्या, चलकै नै बे-जाणी,

10:56, 11 जून 2018 का अवतरण

सांग:- सत्यवान-सावित्री (अनुक्रमांक-8)

वार्ता:- सज्जनों! फिर सखियों के कहने से सत्यवान नहीं बोलता है और न ही पेड़ से उतरता। तभी सावित्री पास मे आती है और उसको बार-बार बोलती रहती है। आखिरकार सावित्री फिर एक बार सत्यवान को कैसे पुकारती है।

जवाब - सावित्री का सत्यवान से।

उतर पेड़ तै लकड़हारे, मै कद की रूक्के देरी,
घणी दूर तै चलकै आई, बात बुझले मेरी ।। टेक ||

माणस धोरै माणस आज्या, चलकै नै बे-जाणी,
आए का आदर करणा चाहिए, बोलै मीठी बाणी,
तनै बात करी ना खड़ी पेड़ कै, नीचै हूर निमाणी,
कौण किसे तै फेटण आवैं, ल्यावै दाणा-पाणी,
बियाबान जेठ का मिहना, शिखर घाम दोहफेरी ।।

काम जरूरी था तो आई, तेरे पास जंगल मैं,
ऋषि तपै सै लगा समाधि, बणोवास जंगल मैं,
मोर-पपैये, काग-हंसणी, फिरै हास जंगल मैं,
हाथी-घोड़े मृग चरै सै, गऊ घास जंगल मैं,
भालू-रीछ, स्वान-भेडियां, बोलै चिते-केहरी ।।

सूर्य जी की तप्ती कन्या, वर टोहवण आई थी,
रचा स्वंयवर सती लक्ष्मी, हर टोहवण आई थी,
पार्वती कैलाश मैं, शिवशंकर टोहवण आई थी,
तेरे कैसा छैल छत्री मै, नर टोहवण आई थी,
होणा चाहिए था भूप का बेटा, सिर पै ताज सुनहेरी ।।

आए का अपमान करै, ना आदर का बेरा,
के बोले बिना पाटै माणस का, शील शुभा का बेरा,
कड़वा बोल जख्म छाती मै, नहीं दवा का बेरा,
तेरी बाट मै अरथ खड़या सै, कोनी राह का बेरा,
राजेराम बहम सा होग्या, सुणी रागनी तेरी ।।