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"नई सदी की क्रांति / राहुल कुमार 'देवव्रत'" के अवतरणों में अंतर

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सरकारी फरमान पर खानापूरी करते  
 
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टीन के शेड  
 
टीन के शेड  
जलती लकडिय़ों की ठंडी पड़ी राख कुरेद कुरेदकर  
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और उसके नीचे जलती लकडिय़ों की ठंडी पड़ी राख  
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कुरेद कुरेदकर  
 
आग की गर्मी को ढूंढते पाते  
 
आग की गर्मी को ढूंढते पाते  
 
मैलै कुचैले लत्तर से स्वयं को ढ़कने का  
 
मैलै कुचैले लत्तर से स्वयं को ढ़कने का  
 
अनावश्यक प्रयास करते असक्त बूढ़े को देखकर
 
अनावश्यक प्रयास करते असक्त बूढ़े को देखकर
कोई स्पंदन नहीं  
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एकदम शांत
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कोई स्पंदन नहीं ......
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एकदम शांत !!
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कोने में पड़े पुआल के ढ़ेर में  
 
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किसी मड़ियल-सी कुतिया ने जने तो थे छः सात बच्चे  
 
किसी मड़ियल-सी कुतिया ने जने तो थे छः सात बच्चे  
 
किंतु दो ही स्तनपान को बचे हैं अब  
 
किंतु दो ही स्तनपान को बचे हैं अब  
सहमी-सी लेटी है  
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...सहमी-सी लेटी है  
 
कभी भी आक्रामक होते नहीं देखा  
 
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तब भी जब सियार ने  
 
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उसके सामने ही झपट लिए थे दो  
 
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व्याकुल हुई थी
 
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रोई चिल्लाई भी थी  
 
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उपवास में चली गई थी दो एक दिन  
 
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किंतु अब शांत बैठी है  
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वहीं कोने में टकटकी लगाए  
 
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आशावान है  
 
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उष्मारहित हो चुकी राख से ऊबकर उठेगा वो
 
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तो ही वह जा सकती है वहाँ बच्चों समेत  
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ट्रेन का इंतजार अभी और करना है  
 
ट्रेन का इंतजार अभी और करना है  
(धुंध की वजह से रोजाना ही लेट रहती है)
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  (खैर मुझे फर्क नहीं पड़ता)  
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(धुंध की वजह से रोजाना ही लेट रहती है
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हाँ कल की मीटिंग की थोड़ी चिंता है
 
हाँ कल की मीटिंग की थोड़ी चिंता है
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दिसम्बर के आसपास
 
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अक्सर ही ट्रेनें लेट हो जाती हैं  
 
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किंतु ये वाला मेरा पसंदीदा है  
 
किंतु ये वाला मेरा पसंदीदा है  
 
यहाँ कोई भद्रजन कभी नहीं बैठता  
 
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कंगला कुतिया और कभी-कभी मैं  
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कंगला .... कुतिया और ... कभी-कभी मैं  
 
बहुत थोड़ा-सा फर्क इसलिए है कि
 
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मेरे पास हैं कपड़े जूते  
 
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मोबाइल और पावरबैंक भी  
 
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रम की छोटी बोतल से दो घूंट गटक
 
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सिगरेट जला ली है मैंने
 
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अनलॉक होते ही
 
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सर्र से चली जाती है न्यूजडेस्क पर
 
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जहाँ जारी रहती है बहस हमेशा इन दिनों  
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यहां जारी रहती है बहस .... हमेशा .....इन दिनों  
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प्रधानमंत्री के दावों  
 
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और दावों की हवा निकालते विपक्ष के बीच  
 
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गरमागरम गालियाँ
 
गरमागरम गालियाँ
घुप्प अंधेरे को चीरती
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धुप्प अंधेरे को चीरती
 
स्क्रीन से निकलती रोशनी
 
स्क्रीन से निकलती रोशनी
और ऊबकाई से थका थका-सा मैं  
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हरा कैसे होऊँ?  
 
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अचानक से पास करती है थ्रू गाड़ी रपारप
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सन्नाटे को चूर  
 
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धूल और हवा के अनियंत्रित बवंडर हिलोरती  
 
धूल और हवा के अनियंत्रित बवंडर हिलोरती  
छुक छुक और क्रां-क्रां का नाद करती  
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छुक-छुक और क्रां-क्रां का नाद करती  
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इस धड़धड़ाहट में
 
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क्यों समझ नहीं पाया मैं  
 
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किकियाती कुतिया की आवाज?  
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रात का सन्नाटा  
 
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सिर्फ आराम के लिए नहीं होता  
 
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शिकारी के लिए स्निग्ध आमंत्रण भी तो है  
 
शिकारी के लिए स्निग्ध आमंत्रण भी तो है  
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झाड़ियों की सुगबुगाहट  
 
झाड़ियों की सुगबुगाहट  
 
और मद्धम पड़ती चीख को  
 
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गर्दन ऊँची कर छटपटाते हुए
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गर्दन ऊँची कर छटपटाते हुए देखने के सिवाय  
देखने के सिवाय कोई विकल्प नहीं है उसके पास  
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कातर भाव से  
 
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पूंछ हिला हिलाकर ताकती है मेरी तरफ  
 
पूंछ हिला हिलाकर ताकती है मेरी तरफ  
 
स्क्रीन पर जारी है  
 
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महान बहस भ्रष्टाचार को लेकर  
 
महान बहस भ्रष्टाचार को लेकर  
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मैं कंगला और कुतिया  
 
मैं कंगला और कुतिया  
 
खामोश बैठे हैं शेड में  
 
खामोश बैठे हैं शेड में  
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अपने बच्चे में "तुम सुरक्षित हो मेरे रहते"  
 
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का भ्रम पैदा करती माँ को देख रहा हूँ मैं  
 
का भ्रम पैदा करती माँ को देख रहा हूँ मैं  
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भ्रष्टाचार का मतलब सिर्फ़  
 
भ्रष्टाचार का मतलब सिर्फ़  
 
वित्तीय गड़बडिय़ां ही नहीं होती
 
वित्तीय गड़बडिय़ां ही नहीं होती

18:46, 13 जून 2018 का अवतरण

मुझे फर्क नहीं पड़ता
सरकारी फरमान पर खानापूरी करते
टीन के शेड
और उसके नीचे जलती लकडिय़ों की ठंडी पड़ी राख

कुरेद कुरेदकर
आग की गर्मी को ढूंढते पाते
मैलै कुचैले लत्तर से स्वयं को ढ़कने का
अनावश्यक प्रयास करते असक्त बूढ़े को देखकर


कोई स्पंदन नहीं ......
एकदम शांत !!


कोने में पड़े पुआल के ढ़ेर में
किसी मड़ियल-सी कुतिया ने जने तो थे छः सात बच्चे
किंतु दो ही स्तनपान को बचे हैं अब


...सहमी-सी लेटी है
कभी भी आक्रामक होते नहीं देखा
तब भी जब सियार ने
उसके सामने ही झपट लिए थे दो


व्याकुल हुई थी
रोई चिल्लाई भी थी
उपवास में चली गई थी दो एक दिन


किंतु ..... अब शांत बैठी है
वहीं कोने में टकटकी लगाए
आशावान है
उष्मारहित हो चुकी राख से ऊबकर उठेगा वो
तो ही वह जा सकती है वहाँ .... बच्चों समेत


ट्रेन का इंतजार अभी और करना है

(धुंध की वजह से रोजाना ही लेट रहती है
 खैर मुझे फर्क नहीं पड़ता)
हाँ कल की मीटिंग की थोड़ी चिंता है


दिसम्बर के आसपास
अक्सर ही ट्रेनें लेट हो जाती हैं
कई सारे शेड बने हैं प्लेटफार्म पर इन दिनों
किंतु ये वाला मेरा पसंदीदा है
यहाँ कोई भद्रजन कभी नहीं बैठता


कंगला .... कुतिया और ... कभी-कभी मैं
बहुत थोड़ा-सा फर्क इसलिए है कि
मेरे पास हैं कपड़े जूते
मोबाइल और पावरबैंक भी


रम की छोटी बोतल से दो घूंट गटक
सिगरेट जला ली है मैंने
उंगलियाँ बड़ी फास्ट हैं मेरी स्क्रीन पर
अनलॉक होते ही
सर्र से चली जाती है न्यूजडेस्क पर

यहां जारी रहती है बहस .... हमेशा .....इन दिनों


प्रधानमंत्री के दावों
और दावों की हवा निकालते विपक्ष के बीच
गरमागरम गालियाँ
धुप्प अंधेरे को चीरती
स्क्रीन से निकलती रोशनी
और ऊबकाई से थका-थका-सा मैं
हरा कैसे होऊँ?


अचानक से पास करती है थ्रू गाड़ी .........रपारप
सन्नाटे को चूर
धूल और हवा के अनियंत्रित बवंडर हिलोरती
छुक-छुक और क्रां-क्रां का नाद करती


इस धड़धड़ाहट में
क्यों समझ नहीं पाया मैं
किकियाती कुतिया की आवाज ?


रात का सन्नाटा
सिर्फ आराम के लिए नहीं होता
शिकारी के लिए स्निग्ध आमंत्रण भी तो है


झाड़ियों की सुगबुगाहट
और मद्धम पड़ती चीख को
गर्दन ऊँची कर छटपटाते हुए देखने के सिवाय

कोई विकल्प नहीं है उसके पास
कातर भाव से
पूंछ हिला हिलाकर ताकती है मेरी तरफ
स्क्रीन पर जारी है
महान बहस भ्रष्टाचार को लेकर


मैं कंगला और कुतिया
खामोश बैठे हैं शेड में
अपने एकमात्र बचे बच्चे को
जीभ से चाटकर
स्वयं को सांत्वना देती
अपने बच्चे में "तुम सुरक्षित हो मेरे रहते"
का भ्रम पैदा करती माँ को देख रहा हूँ मैं


भ्रष्टाचार का मतलब सिर्फ़
वित्तीय गड़बडिय़ां ही नहीं होती
इतनी नैतिकता को कौन सुने?
क्योंकि यह देश बदल रहा है
और दिल्ली में क्रांति जारी है