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"परिंदे लौट आएंगे? / राहुल कुमार 'देवव्रत'" के अवतरणों में अंतर

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एक दिन परिंदे घर को लौट आएंगे।
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एक दिन परिंदे घर को लौट आएंगे
  
घोंसले की लड़ाई,
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घोंसले की लड़ाई तब शुरू हुई थी
तब शुरू हुई थी।
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जब अंडे से बाहर ही निकले थे
जब अंडे से बाहर ही निकले थे।
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चुग्गे को लेकर दूसरी बार नोकझोंक हुई थी शायद
चुग्गे को लेकर,
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चिड़ी दंपत्ति ने नजरअंदाज कर दिया
दूसरी बार नोकझोंक हुई थी शायद।
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स्वभावतः यह बालपन का बर्ताव जो ठहरा
चिड़ी दंपत्ति ने नजरअंदाज कर दिया।
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स्वभावतः यह बालपन का बर्ताव जो ठहरा।
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फिर उड़ने की अपनी-अपनी लालसा।
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अपना-अपना सामर्थ्य।
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संगत साथी के चुनाव में भी भिन्नता।
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अब टकराव की स्थिति,
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रोज ही पैदा हो जाया करती।
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दिन-ब-दिन बिगड़ता जा रहा था,
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लड़ाई का स्वरूप।
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और इन सबके बीच दंपत्ति मूकदर्शक।
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किंतु मन का विश्वास।
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फिर उड़ने की अपनी-अपनी लालसा
एक दिन परिंदे घर को लौट आएंगे।
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अपना-अपना सामर्थ्य
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संगत साथी के चुनाव में भी भिन्नता
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अब टकराव की स्थिति रोज ही पैदा हो जाया करती
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दिन-ब-दिन बिगड़ता जा रहा था लड़ाई का स्वरूप
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और इन सबके बीच दंपत्ति मूकदर्शक
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किंतु मन का विश्वास
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एक दिन परिंदे घर को लौट आएंगे
  
उस दिन अचानक ही तो,
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उस दिन अचानक ही तो पूरा आकाश पटा पड़ा था  
पूरा आकाश पटा पड़ा था,
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चक्कर काटते परिंदों के करुण क्रंदन से
चक्कर काटते परिंदों के करुण क्रंदन से।
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निर्जन वन में छिड़ चुकी थी भीषण लड़ाई  
जब निर्जन वन में,
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दोनों किशोरवय के बीच  
छिड़ चुकी थी भीषण लड़ाई
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दोनों किशोरवय के बीच।
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तीक्ष्ण, नुकीले चोंच के निर्मम प्रहार से
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परस्पर नोंच डाले गए उनके रोंए.
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लहूलुहान पंख।
+
पैर से बहता खून।
+
और इन दो के बीच बचाव में
+
पूरा पक्षी समूह घायल।
+
गर्जन तर्जन के मध्य,
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एक दूसरे को नष्ट कर देने की उनकी जिद ने
+
पूर्णरूपेण ही बदल डाला था,
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जंगल का नैसर्गिक सौंदर्य, उनका हरापन
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और उनकी सीमित परिधि को भी।
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तभी तो, बँट चुका है पूरा जंगल,
+
दो खेमों में।
+
और अब जारी हो चुकी है,
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खेमों की लड़ाई.
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अहा! इतनी विषम परिस्थिति,  
+
तीक्ष्ण , नुकीले चोंच के निर्मम प्रहार से
ढ़लती उम्र और चिंतित दम्पत्ति।
+
परस्पर नोच डाले गए उनके रोएं
फिर भी मन का विश्वास,
+
पैर से बहता खून
एक दिन परिंदे घर को लौट आएंगे।
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और इन दो के बीच बचाव में पूरा पक्षी समूह घायल
  
अभी कुछ ही दिन पहले,
+
गर्जन-तर्जन के मध्य
एक खेमे ने दूसरे का घोंसला तोड़ डाला है।
+
एक दूसरे को नष्ट कर देने की उनकी जिद ने  
दूसरे ने पहले के बच्चे मार गिराए हैं।
+
पूर्णरूपेण ही बदल डाला था
फिर पहले ने दूसरे का अंडे तोड़ डाले हैं।
+
जंगल का नैसर्गिक सौंदर्य , उनका हरापन
सक्षम खेमे ने, युद्ध क्षेत्र में
+
और उनकी सीमित परिधि को भी
अद्भुत शौर्य का परचम लहराया है।
+
  
आपको मालूम
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तभी तो बंट चुका है पूरा जंगल दो खेमों में
उसने, संगठित होकर
+
और अब जरी है खेमों की लड़ाई
दूसरे खेमे के पेड़ ही गिरा डाले हैं।
+
आश्रयविहीन और
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कमजोर पड़ता खेमा,
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दूसरे जंगल को पलायन कर चुका है।
+
  
किंतु जिसे आप खत्म समझ रहे हैं,  
+
विषम परिस्थिति , ढलती उम्र , चिंतित दंपत्ति
कहानी वहीं से शुरू होती है।
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दो परिंदों से शुरू हुई इस लड़ाई की जद़ में
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आ चुके हैं दो जंगल।
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और अब दो जंगलों में,  
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खूनी संघर्ष जारी है।
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पहले विष के बीच रोपित हुए थे।
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किंतु मन का विश्वास
अब कंटीले पेड़ उग रहे हैं।
+
एक दिन परिंदे घर को लौट आएंगे
जहरीले फल लग रहे हैं।
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और जहर का सैलाब चल पड़ा है।
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सैकडों क्षत् विक्षत शव
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जंगल में बिखरे पड़े हैं।
+
उनकी सड़ांध पूरे जंगल में फैली है।
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और इसी जंगल में,
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अभी कुछ ही दिन पहले
जीवन के अंतिम क्षण काटते।
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एक ने दूसरे का घोंसला तोड़ डाला है
अपने घोंसले में चिड़ी दंपत्ति,
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दूसरे ने पहले के बच्चे मार गिराए हैं
विवश, लाचार पड़े हैं।
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फिर दूसरे ने पहले का अंडा तोड़ डाला है
एक दूसरे की आंखों में देखते हैं।
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पश्चाताप करते हैं।
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क्या सचमुच परिंदे घर को लौट आएंगे?
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सक्षम खेमे ने युद्ध क्षेत्र में
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अद्भुत शौर्य का परचम लहराया है
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आपको मालूम ........
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उसने संगठित होकर
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दूसरे खेमे के पेड़ ही गिरा डाले हैं 
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कमजोर पड़ता खेमा
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दूसरे जंगल को पलायन कर चुका है
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किंतु जिसे आप खत्म समझ रहे हैं
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कहानी वहीं से शुरू होती है
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दो परिंदों से शुरू हुई इस लड़ाई की जद में
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आ चुके हैं दो जंगल
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और अब दो जंगलों में खूनी संघर्ष जारी है
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पहले विष के बीज रोपित हुए थे
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अब कटीले पेड़ उग रहे हैं
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जहरीले फल लग रहे हैं
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और जहर का सैलाब चल पड़ा है
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सैकड़ों क्षत-विक्षत शव
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जंगल में बिखरे पड़े हैं
 +
उनकी सरांध पूरे जंगल में फैली है
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इसी जंगल में
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जीवन के अंतिम क्षण काटते
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अपने घोंसले में चिड़ी दंपत्ति
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विवश लाचार पड़े हैं
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एक- दूसरे की आंखों में देखते हैं
 +
पश्चाताप करते हैं
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 +
क्या सचमुच परिंदे घर को लौट आएंगे ?
 
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18:50, 13 जून 2018 के समय का अवतरण

एक दिन परिंदे घर को लौट आएंगे

घोंसले की लड़ाई तब शुरू हुई थी
जब अंडे से बाहर ही निकले थे
चुग्गे को लेकर दूसरी बार नोकझोंक हुई थी शायद
चिड़ी दंपत्ति ने नजरअंदाज कर दिया
स्वभावतः यह बालपन का बर्ताव जो ठहरा

फिर उड़ने की अपनी-अपनी लालसा
अपना-अपना सामर्थ्य
संगत साथी के चुनाव में भी भिन्नता
अब टकराव की स्थिति रोज ही पैदा हो जाया करती
दिन-ब-दिन बिगड़ता जा रहा था लड़ाई का स्वरूप
और इन सबके बीच दंपत्ति मूकदर्शक
किंतु मन का विश्वास
एक दिन परिंदे घर को लौट आएंगे

उस दिन अचानक ही तो पूरा आकाश पटा पड़ा था
चक्कर काटते परिंदों के करुण क्रंदन से
निर्जन वन में छिड़ चुकी थी भीषण लड़ाई
दोनों किशोरवय के बीच

तीक्ष्ण , नुकीले चोंच के निर्मम प्रहार से
परस्पर नोच डाले गए उनके रोएं
पैर से बहता खून
और इन दो के बीच बचाव में पूरा पक्षी समूह घायल

गर्जन-तर्जन के मध्य
एक दूसरे को नष्ट कर देने की उनकी जिद ने
पूर्णरूपेण ही बदल डाला था
जंगल का नैसर्गिक सौंदर्य , उनका हरापन
और उनकी सीमित परिधि को भी

तभी तो बंट चुका है पूरा जंगल दो खेमों में
और अब जरी है खेमों की लड़ाई

विषम परिस्थिति , ढलती उम्र , चिंतित दंपत्ति

किंतु मन का विश्वास
एक दिन परिंदे घर को लौट आएंगे

अभी कुछ ही दिन पहले
एक ने दूसरे का घोंसला तोड़ डाला है
दूसरे ने पहले के बच्चे मार गिराए हैं
फिर दूसरे ने पहले का अंडा तोड़ डाला है

सक्षम खेमे ने युद्ध क्षेत्र में
अद्भुत शौर्य का परचम लहराया है
आपको मालूम ........
उसने संगठित होकर
दूसरे खेमे के पेड़ ही गिरा डाले हैं
कमजोर पड़ता खेमा
दूसरे जंगल को पलायन कर चुका है

किंतु जिसे आप खत्म समझ रहे हैं
कहानी वहीं से शुरू होती है
दो परिंदों से शुरू हुई इस लड़ाई की जद में
आ चुके हैं दो जंगल
और अब दो जंगलों में खूनी संघर्ष जारी है

पहले विष के बीज रोपित हुए थे
अब कटीले पेड़ उग रहे हैं
जहरीले फल लग रहे हैं
और जहर का सैलाब चल पड़ा है

सैकड़ों क्षत-विक्षत शव
जंगल में बिखरे पड़े हैं
उनकी सरांध पूरे जंगल में फैली है

इसी जंगल में
जीवन के अंतिम क्षण काटते
अपने घोंसले में चिड़ी दंपत्ति
विवश लाचार पड़े हैं
एक- दूसरे की आंखों में देखते हैं
पश्चाताप करते हैं

क्या सचमुच परिंदे घर को लौट आएंगे ?