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"मुक्तक-12 / रंजना वर्मा" के अवतरणों में अंतर

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16:10, 14 जून 2018 का अवतरण

अब धर्म मे यों पाप का संचार मत करिये
व्यक्तित्व होता आचरण बेकार मत करिये।
जो आत्महन्ता आचरण वह श्रेष्ठ है क्योंकर
कुछ कीजिये पर यार भ्रष्टाचार मत करिये।।

लिखी हर कदम जीत या हार है
जगत में सदा श्रेष्ठ व्यवहार है।
सदाचार की कोई तुलना नहीं
यही धर्म है प्राणआधार है।।

जिस्म की बर्फ पिघलती होगी
आह अधरों से निकलती होगी।
कोई हमदर्द जो मिलता होगा
दर्द की शम्मा भी जलती होगी।

श्याम सुंदर को रिझाने के लिये
रूप को मन मे बसाने का लिये।
एक पत्थर को बना लो देवता
साँवरे का प्यार पाने के लिये।।

सहम कर कभी जो गरल हो गये
जमे भाव सारे तरल हो गये।
पड़ीं मुशकिलें उलझनें बढ़ गयीं
कठिन प्रश्न लेकिन सरल हो गये।।