भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"चर-भर में लाग्या दूभरिया / मोहम्मद सद्दीक" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोहम्मद सद्दीक |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
17:29, 14 जून 2018 के समय का अवतरण
चरभर में लाग्या दूभरिया
सब डूबै कुण उभरिया रै
माटी रा माणक मांदां है
इस्या करम थै क्यूं करिया।
मार पालथी नो घर रोक्या
और लगाली दूण-
गट, गट गिटगी सगळी गोट्यां
काळो मूंडो हूण
थारो काळो मूंडो हूण
मतना देवो दोस भायला
जीणो। तो मरिया।
धरा बिलखती रोती दीसै
रोहीड़ै रा फूल
क्यूं धिसक्यो धरती रो धीरज
पाणी री पत भूल
काळ चाबसी मिनख मोकळा
तूं भी तो चरिया।