भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"इमारत एक आलीशान है दिल / राज़िक़ अंसारी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राज़िक़ अंसारी }} {{KKCatGhazal}} <poem> मेरी तन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(कोई अंतर नहीं)

19:03, 20 जून 2018 का अवतरण

मेरी तन्हाई मेरा जुनूं और मैं
ए शबे हिज्र कितना चलूं और मैं

डाल दे क़ैद ख़ाने फिर से मुझे
तेरे दरबार में सर निगूं और मैं ?

कर रही है ज़रूरत तक़ाज़ा मगर
तुझ पे कोई क़सीदा लिखूँ और मैं ?

तुझ को पाने की धुन में भटकते रहे
एक बे चारा दिल बे सुकूँ और मैं

वो तो घर के चिराग़ों से मजबूर हूं
आंधियो! वरना तुम से डरूं और मैं ?