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"आँखें पोंछ लो / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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+ | नई कृतियाँ | ||
+ | सजाएँगे फिर से | ||
+ | नई मुस्काने | ||
+ | प्यासे अधर पर | ||
+ | मुद्रित करें | ||
+ | विधु- से भाल पर | ||
+ | मधु -चुम्बन | ||
+ | हँसेगी सारी सृष्टि | ||
+ | करेंगे नेह-वृष्टि | ||
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14:19, 21 जून 2018 का अवतरण
आँखे पोंछ लो
पास में बैठो आज
एक -दो पल
माना मन विकल
स्मित बिखेरो
हेर लाओ सपने
तिरते रहे
गुलाबी नयनों में,
जो निकले थे
तट की तलाश में।
रुकना नहीं
क्रूर आखेटक हैं
खड़े सामने
बन मृगशावक
झुकना नहीं।
फिर -फिर रचेंगे
नई कृतियाँ
सजाएँगे फिर से
नई मुस्काने
प्यासे अधर पर
मुद्रित करें
विधु- से भाल पर
मधु -चुम्बन
हँसेगी सारी सृष्टि
करेंगे नेह-वृष्टि
-०-