भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"लोग करने लगे जवाब तलब / राज़िक़ अंसारी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राज़िक़ अंसारी }} {{KKCatGhazal}} <poem> लोग करन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

15:40, 21 जून 2018 के समय का अवतरण

लोग करने लगे जवाब तलब
अब अदालत में हों जनाब तलब

वो चराग़ों से हाथ धो बैठे
कर रहे थे जो आफ़ताब तलब

 ज़ख़्म कुछ और दर्ज करने हैं
कीजिये मत अभी हिसाब तलब

दे चुकी नींद अपनी मंज़ूरी
कर लिए जाएं सारे ख़्वाब तलब

मांगना है तो फिर चमन मांगे
क्यों करें एक दो गुलाब तलब