"मुंतज़िर / राहुल कुमार 'देवव्रत'" के अवतरणों में अंतर
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बदल लेता है रास्ता | बदल लेता है रास्ता | ||
मेरी पोखर के एकदम नजदीक से | मेरी पोखर के एकदम नजदीक से | ||
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नाकाम कोशिश से पैदा हुई खीझ | नाकाम कोशिश से पैदा हुई खीझ | ||
मन के अंधकूप से बाहर नहीं निकल पाती मेरे | मन के अंधकूप से बाहर नहीं निकल पाती मेरे | ||
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अच्छा ही तो है कि खाली नहीं रहता | अच्छा ही तो है कि खाली नहीं रहता | ||
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नियति के निर्धारित लक्ष्य का चाकर | नियति के निर्धारित लक्ष्य का चाकर | ||
दो रातों के बीच पिसता रहता हूँ | दो रातों के बीच पिसता रहता हूँ | ||
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चूड़ हुए एहसासों को बीनने | चूड़ हुए एहसासों को बीनने | ||
− | गाहे गाहे आती है सुबह आंचल फैलाए | + | गाहे-गाहे आती है सुबह आंचल फैलाए |
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रंजीदा मुदासरत | रंजीदा मुदासरत | ||
और भी क्या-क्या बैठी है मेरे सिरहाने | और भी क्या-क्या बैठी है मेरे सिरहाने | ||
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हवा में दर्द छोड़ गई है | हवा में दर्द छोड़ गई है | ||
कुछ इस तरह जाते का निशान | कुछ इस तरह जाते का निशान | ||
कि सोता तो हूँ | कि सोता तो हूँ | ||
किंतु सो नहीं पाता इन दिनों | किंतु सो नहीं पाता इन दिनों | ||
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मकान चाहे जिसका हो | मकान चाहे जिसका हो | ||
नींव का कारीगर कम हैरां नहीं होता | नींव का कारीगर कम हैरां नहीं होता | ||
ईमारत के जख्म देखकर | ईमारत के जख्म देखकर | ||
− | अस्पताल से लौटते तुम खुश क्यों नहीं हो? | + | |
− | आओ! लेट जाओ | + | अस्पताल से लौटते तुम खुश क्यों नहीं हो ? |
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तेल सने हाथेलियों की रगड़ | तेल सने हाथेलियों की रगड़ | ||
जमे हुए रक्त के प्रवाह को रास्ता देती है | जमे हुए रक्त के प्रवाह को रास्ता देती है | ||
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मैं और हवा दोनों ने स्पर्श किये हैं एकसाथ | मैं और हवा दोनों ने स्पर्श किये हैं एकसाथ | ||
पर तुम चंगी नहीं हो पाओगी इस तरह | पर तुम चंगी नहीं हो पाओगी इस तरह | ||
− | तुम्हारी मांसपेशियाँ नहीं होती ना | + | ....तुम्हारी मांसपेशियाँ नहीं होती ना |
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12:48, 3 जुलाई 2018 के समय का अवतरण
एक ही चीज से भरा रहता हूँ
बहता आता मीठा पानी
बदल लेता है रास्ता
मेरी पोखर के एकदम नजदीक से
नाकाम कोशिश से पैदा हुई खीझ
मन के अंधकूप से बाहर नहीं निकल पाती मेरे
अच्छा ही तो है कि खाली नहीं रहता
नियति के निर्धारित लक्ष्य का चाकर
दो रातों के बीच पिसता रहता हूँ
चूड़ हुए एहसासों को बीनने
गाहे-गाहे आती है सुबह आंचल फैलाए
रंजीदा मुदासरत
और भी क्या-क्या बैठी है मेरे सिरहाने
हवा में दर्द छोड़ गई है
कुछ इस तरह जाते का निशान
कि सोता तो हूँ
किंतु सो नहीं पाता इन दिनों
मकान चाहे जिसका हो
नींव का कारीगर कम हैरां नहीं होता
ईमारत के जख्म देखकर
अस्पताल से लौटते तुम खुश क्यों नहीं हो ?
आओ ! ...लेट जाओ
तेल सने हाथेलियों की रगड़
जमे हुए रक्त के प्रवाह को रास्ता देती है
ताखे पर रखी जो है छोटी-सी डिबिया
मैं और हवा दोनों ने स्पर्श किये हैं एकसाथ
पर तुम चंगी नहीं हो पाओगी इस तरह
....तुम्हारी मांसपेशियाँ नहीं होती ना