भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अंक में भरो / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
पंक्ति 47: पंक्ति 47:
 
ओ मन- परिणीता
 
ओ मन- परिणीता
 
अंक में भरो ।
 
अंक में भरो ।
 +
11
 +
कर्मयोगिनी
 +
अच्छे  ही कर्म करे
 +
दु:ख ही भरे ।
 +
12
 +
क्या कर्म-फल?
 +
शुभ सोचे व करे
 +
नरक भरे?
 +
13
 +
तापसी जगी
 +
नींद हुई बैरन
 +
कोसों है दूर्।
 
-०-
 
-०-
  
 
</poem>
 
</poem>

20:35, 3 जुलाई 2018 का अवतरण


1
प्राण बनूँ मैं
तुझमें ही समाऊँ
कहीं न जाऊँ।
2
पीता रहूँगा
अधर चषक से
प्यास बुझाऊँ।
3
तुम्हारे बिना
कहाँ- कहाँ भटके
प्राण अटके।
4
चैन न पाया
सागर तर आया
तुझमें डूबा।
5
कहाँ थे खोए
तुम प्राण हमारे
बाट निहारें।
6
उड़के आऊँ
गले लगा तुझको
जीवन पाऊँ।
7
दर्द तुम्हारा
सुधा समझ पी लूँ
दो पल जी लूँ।
8
मेरी योगिनी!
क्यों बनी वियोगिनी
कम्पन तुम्हीं
9
अंक में ले लो
हरो सन्ताप सारे
हे प्राण प्यारे।
 10
सँभालो मुझे
ओ मन- परिणीता
अंक में भरो ।
11
कर्मयोगिनी
अच्छे ही कर्म करे
दु:ख ही भरे ।
12
क्या कर्म-फल?
शुभ सोचे व करे
नरक भरे?
13
तापसी जगी
नींद हुई बैरन
कोसों है दूर्।
-०-