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"आग पानी के पास.. / ज्योत्स्ना शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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एक बस तू ही नहीं महफ़िल में
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सारी दुनिया उदास लगती है ।
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किस क़दर खार भर लिया दिल में
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फिर ये कहता है प्यास लगती है ।
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बेतकल्लुफ़ मिली ख़ुशी-ग़म से
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ज़िंदगी ख़ुदशनास लगती है ।
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झिलमिलाता है आस का तारा
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सुबह भी आसपास लगती है ।
  
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03:54, 6 जुलाई 2018 के समय का अवतरण


ये अदा भी तो ख़ास लगती है
आग पानी के पास लगती है ।
एक बस तू ही नहीं महफ़िल में
सारी दुनिया उदास लगती है ।
किस क़दर खार भर लिया दिल में
फिर ये कहता है प्यास लगती है ।
बेतकल्लुफ़ मिली ख़ुशी-ग़म से
ज़िंदगी ख़ुदशनास लगती है ।
झिलमिलाता है आस का तारा
सुबह भी आसपास लगती है ।