"सुख चाह्वै जीवन का बंदे उस मालिक का नाम ले / गन्धर्व कवि प. नन्दलाल" के अवतरणों में अंतर
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सुख चाह्वै जीवन का बंदे, उस मालिक का नाम ले,
सच्चा उसका नाम जगत मैं, जो गिरते नै थाम ले ।। टेक ।।
सुख दुःख रोग भोग, भोगी के दिन रात रहैं,
भले बुरे दो कर्म बणे जो सदा जीव कै साथ रहैं,
हानि-लाभ जीणा-मरणा, यश-अपजस विधि हाथ रहैं,
या सुन्दर काया रहै पड़ी, और खड़ी हमेशा बात रहै,
तेरै घट त्रिलोकी नाथ रहै, रट नाम सुबह और शाम ले।।
ध्रुव भगत नै जगत जाणता, बचपन मैं नाम रटया देखो,
प्रह्लाद याद नाम किया, नृसिंह रूप प्रकट्या देखो,
भगत सुदामा शरण गया, दुःख दरिद्र दूर हट्या देखो,
हाऱया दुष्ट दुःशाशन, ना द्रोपदी का चीर घट्या देखो,
रावण से विभीषण फट्या, देखो नर रट तूँ राम-राम ले।।
डूबता जा गजराज उभारया, जिसने हरि का नाम लिया,
सुग्रीव समर मैं निर्भय होग्या, बाली को निज धाम लिया,
इसी नाम को लेकर मीराबाई, जहर का जाम पिया,
श्री राम नाम ले हनुमान नै, कठिन-कठिन सब काम किया,
इंद्री तन मन जीभ जिया, इन सब से योही काम ले।।
पीपा और रैदास कबीरा, सुमरया सैना नाईं,
अजामिल और बाल्मीकि, और रटग्या सदना कसाई,
केशोराम गणिका तिरगी, तोते की करी पढ़ाई,
कुंदनलाल कहै नरसी की, होगी थी भरपाई,
नंदलाल करो सफल कमाई, कर आगे का इंतज़ाम ले।।