भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बिना विचारे काम करै जो, उसके जी नै रासा हो सै / गन्धर्व कवि प. नन्दलाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गन्धर्व कवि पं नन्दलाल |अनुवादक= |...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
19:07, 10 जुलाई 2018 के समय का अवतरण
बिना विचारे काम करै जो, उसके जी नै रासा हो सै,
ठाढी बीर मर्द हो हीणा, फेर किसा घरवासा हो सै ।।टेक।।
बुराई मैं पा धरके देख लियो,
चाहे जीता मरके देख लियो,
बेशक करके देख लियो,
यो घर फूक तमाशा हो सै ।।
क्षत्री रण बीच लड़ैगा सीधा ,
सर्प बिल बीच बड़ैगा सीधा ,
उल्टा गेर पड़ैगा सीधा ,
जो तकदीरी पासा हो सै।।
ध्यान हरि का धरना अच्छा ,
बुरे काम तै डरना अच्छा ,
मानहानि से मरना अच्छा ,
बुरी पराई आशा हो सै,।।
दो दिन का यो छैल बराती ,
फिर ये ज्यान अकेली जाती ,
नंन्दलाल कहै एक धर्म संघाति ,
जब मरघट का बासा हो सै।।