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"बाढ़ का पानी / भावना कुँअर" के अवतरणों में अंतर

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क्यों कर करे
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अपनी मनमानी।
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मची है कैसी
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ये अज़ब तबाही।
  
 
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04:14, 11 जुलाई 2018 का अवतरण


बाढ़ का पानी
फैला चारों ही ओर
डूब गए हैं
सारे ही ओर छोर।
जाने कितने
टूटकर बिखरे
घर,सपने।
और बिछुड़ गए
पलभर में
कितनों के अपने।
प्रकृति कैसे
खेल रही है खेल
कहीं है सूखा
कहीं बाढ़ का पानी
क्यों कर करे
अपनी मनमानी।
मची है कैसी
ये अज़ब तबाही।