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"आज नशे मैं शैलैन्द्री, मनै बङी दिखाई दे / गन्धर्व कवि प. नन्दलाल" के अवतरणों में अंतर

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सांग:- कीचक वध

आज नशे मैं शैलेन्द्री' मनै बङी दिखाई दे,
खम्बे जैसी बला धरण मैं, पङी दिखाई दे ।। टेक ।।

रुप तेरा खिलरया अजब कमाल, डटै नही डाटी दिल की झाल,
लखन लाल की ढाल, संजीवन जङी दिखाई दे।।

ऐसी लगी कालजै चोट, मनै इब लई जिगर मैं ओट,
बिना खता बे खोट, नजर क्यूं कङी दिखाई दे।।

गात सैं भिङा हाथ चकराया , रोष मैं भरी कीचक की काया,
सारा माल डकराया, काटता लङी दिखाई दे।।

बीतजा वक्त हाथ नहीं आवै , कहै नन्दलाल फेर पछतावै,
जब आके काल दबावै, ना टलती घङी दिखाई दे।।