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हो गई हैं दफ़न
 
उन्हीं के साथ
 
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या फिर भस्मीभूत,
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गुलाबी पंखुड़ियाँ,
 
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महकी हुई
 
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मुस्काते शब्द
 
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अंत मे लिखा हुआ
 
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फैल जाया करती  
 
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उसकी आँखें
 
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मुस्काती मौन रह
 
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प्रेम की भाषा,
 
प्रेम की भाषा,
ही होगी दफ़न,
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न होगी दफ़न ही,
 
न भस्मीभूत;
 
न भस्मीभूत;
 
क्योंकि बदलती है
 
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पंखुरियाँ न सही
 
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पीड़ामिश्रित-आशा
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मन -उद्वेग
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बन्द होते झरोखे
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कभी खुलते
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झाँकती रश्मियों के
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हाथ रचते
 
खुशबू से महके  
 
खुशबू से महके  
 
'''प्रेमग्रंथ के पन्ने...।'''
 
'''प्रेमग्रंथ के पन्ने...।'''

22:59, 12 जुलाई 2018 के समय का अवतरण



माना हो गए
अंतर्देशीय गुम
लिफ़ाफ़े-चिठ्ठी,
हो गई हैं दफ़न
उन्हीं के साथ
या फिर भस्मीभूत,
प्यारी कोमल
गुलाबी पंखुड़ियाँ,
महकी हुई
लिफ़ाफ़े के भीतर,
बार-बार थी
प्रियतमा पढ़ती
मुस्काते शब्द
अंत मे लिखा हुआ
‘सिर्फ तुम्हारा!’
फैल जाया करती
उसकी आँखें
अनुभव करती
अद्भुत प्रेम
वह अनुभूति भी
हुई दफ़न
या कहूँ भस्मीभूत,
नहीं रुकेंगीं
प्रिय की आँखें कभी
लिखेंगी सदा
मुस्काती मौन रह
प्रेम की भाषा,
न होगी दफ़न ही,
न भस्मीभूत;
क्योंकि बदलती है
अभिव्यक्ति ही
अपरिवर्तित है-
पवित्र प्रेम,
इसका धर्म नहीं,
सार्वभौम है,
केवल सत्यता है
इसका धर्म
विज्ञान जहाँ खत्म,
वहाँ से शुरू!
प्रेम होता शाश्वत
परास्त हुई
तकनीक इससे,
इसीलिए तो
झँपती नहीं कभी
मुस्काती आँखें
और कनखियों से
देखती हुई
प्यारी तरल आँखें
बिना लिफाफे
बिना अंतर्देशीय,
मोबाइल के;
पंखुरियाँ न सही
आँखें भेजतीं
पीड़ामिश्रित-आशा
मन -उद्वेग
बन्द होते झरोखे
कभी खुलते
झाँकती रश्मियों के
हाथ रचते
खुशबू से महके
प्रेमग्रंथ के पन्ने...।
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