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मा (पांच) / राजेन्द्र जोशी

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घरै डीकरै भेळी
म्हारी मा दादी-मा हुयगी।
म्हनै रमावती जिका रमतिया
उण रमतियां सूं खेलण लागै
म्हारै डीकरै भेळी
म्हारी मा।
 
उण मेळै में डीकरै सागै
हींडा हींडै
दादी-मा अर पोता-पोती
हींडो रोज हींडण नै जावै
म्हैं नीं जावूं हींडो हींडण नै
मनड़ो म्हारो अबै बदळग्यो
नीं हूं म्हैं डीकरो
नीं रैया म्हारा बै भाव
नीं रैयी बा खिमता
म्हैं डीकरो नीं हूं।
 
नीं बदळ्यो आणंद
नीं बदळ्यो सुभाव
मनड़ो नीं बदळ्यो
म्हारै मनड़ै री ओळखाण राखै
म्हारै डीकरै रै प्राणां मांय रमै
नीं बदळी म्हारी मा
मा, मा है
अबार ई मा है।
 
</poem>
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