भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"लागतै भादवै बरस! / राजेन्द्र जोशी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेन्द्र जोशी |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
22:49, 24 जुलाई 2018 के समय का अवतरण
आवणो है थनै
सोनलिया धोरां
ताळाब-बावड़ी
दरखत अर खेतां रै
साम्हीं देख।
म्हैं जाणूं
इंदर रो टैम
सावण रै सागै
म्हारै कानी देख
बगत ई
थारै आवण री।
थारै आयां
लबालब हुय जासी
महकसी माटी
हरिया टांच दरखत अर खेत
लागतै भादवै
बरस, बरस, बरस!