भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कद आवैला खरूंट / राजेन्द्र जोशी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेन्द्र जोशी |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
22:53, 24 जुलाई 2018 के समय का अवतरण
जेठ महीनै मांय
सावण-भादवै रो अैसास करावै
ठेकैदार री काळी काया
'मिनरल वाटरÓ पीवै
बाखळ मांय बैठ्यो
फेरूं ई नीं बुझै तिरस
ठेकैदार री।
म्हनै लागै बो पाणी नीं
सात बरसां री सत्तू रो
रगत पीवै मुळकतो-मुळकतो
म्हारै अर सत्तू रै बापू रो
रगत अबै नीं बच्यो है
पी लीनो ठेकैदार
भोर सूं सिंझ्या तांई
चाळीस बरसां लग।
चाळीस बरसां सूं
सरकार अर उणरै ठेकैदारां रै
नाड़ी मांय, म्हारै परिवार रो
तपतो रगत बंारै रूं-रूं मांय
बांरी अणथाग ताकत हुयगी।
नीं दीखै म्हारै हियै रा घाव राज नै
जिका हर्या हुयग्या, बूढा नीं हुया
नीं बतळाय सकूं उण घावां नै
सिंझ्या सूं पैली।
सिंझ्या पछै आपस मांय
प्रीत करै हर्या घाव
अर पूछै अेक दूजै नै
थूं कित्ता बरस रो है घाव।
म्हैं नीं जाणूं—
कद आवैला खरूंट!