"लिखा जो शिलालेख / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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आँधी -तूफ़ान | आँधी -तूफ़ान | ||
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पराजित हो गई। | पराजित हो गई। | ||
आ गया कोई | आ गया कोई | ||
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शिला को चूमा | शिला को चूमा | ||
अंकित कर दिए | अंकित कर दिए | ||
मधु अधर, | मधु अधर, | ||
कोमल कराग्र से | कोमल कराग्र से | ||
− | छुअन लिखी; | + | '''छुअन लिखी'''; |
करतल की छाप | करतल की छाप | ||
उभरी ,खिली | उभरी ,खिली | ||
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पथिक चौंका- | पथिक चौंका- | ||
यह क्या ज़ादू हुआ | यह क्या ज़ादू हुआ | ||
− | अमृत झरा | + | अमृत झरा ! |
द्वि अधरों -करों से | द्वि अधरों -करों से | ||
केवल छुआ ! | केवल छुआ ! | ||
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न तो टूटेगी शिला | न तो टूटेगी शिला | ||
मिटेगा नहीं | मिटेगा नहीं | ||
− | लिखा जो शिलालेख | + | '''लिखा जो शिलालेख |
− | सामान्य जैसे | + | सामान्य जैसे''' |
अधरों ने , करों ने। | अधरों ने , करों ने। | ||
क्योंकि छुपा है | क्योंकि छुपा है | ||
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रोम -रोम में- | रोम -रोम में- | ||
अधर -छुअन में | अधर -छुअन में | ||
− | करों के-स्पन्दन में। | + | करों के-स्पन्दन में। |
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00:35, 5 अगस्त 2018 के समय का अवतरण
शिला थी कभी
कितने आए-गए
आँधी -तूफ़ान
टकराकर थके
चूर हो गए
कुछ न लिख पाए
बारिश आई
धोकर निकल गई
धूप बरसी
पिंघला नहीं सकी
शीत-जड़ता
पराजित हो गई।
आ गया कोई
पथिक चुपचाप
शिला को चूमा
अंकित कर दिए
मधु अधर,
कोमल कराग्र से
छुअन लिखी;
करतल की छाप
उभरी ,खिली
अनुराग दृष्टि से
जड़ शिला को
नई ज़िन्दगी मिली
पथिक चौंका-
यह क्या ज़ादू हुआ
अमृत झरा !
द्वि अधरों -करों से
केवल छुआ !
शिला पर चित्रित
अधर -छाप
हृदय के तल से
हृदय जुड़ा
जीवन्त हुई शिला
प्राण उमड़े
बाहें उग आईं
जुड़े दो प्राण
नेह में बाँध लिया
प्रिय पथिक !
आएँगी आँधियाँ भी
मेघ-विस्फोट
प्रलय मचाएगा
काँपेगी धरा
न तो टूटेगी शिला
मिटेगा नहीं
लिखा जो शिलालेख
सामान्य जैसे
अधरों ने , करों ने।
क्योंकि छुपा है
विराट रूप प्रेम
रोम -रोम में-
अधर -छुअन में
करों के-स्पन्दन में।