भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कटे न पाश / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | 11 | |
− | + | मुस्कानें मरी | |
+ | हँसी गले में फँसी | ||
+ | बधिक -पाश | ||
+ | 12 | ||
+ | '''कटे न पाश''' | ||
+ | खुशियाँ हुई कैद | ||
+ | पंख भी कटे। | ||
+ | 13 | ||
+ | प्राण हुए हैं | ||
+ | अब बोझ -से भारी | ||
+ | चले भी आओ। | ||
+ | 14 | ||
+ | कैसा मौसम! | ||
+ | झुलसी हैं ऋचाएँ | ||
+ | असुर हँसें। | ||
+ | 15 | ||
+ | उर -पाँखुरी | ||
+ | झेले पाषाण -वर्षा | ||
+ | अस्तित्व मिटे। | ||
+ | 16 | ||
+ | ईर्ष्या सर्पिणी | ||
+ | फुत्कारे अहर्निश | ||
+ | झुलसे मन। | ||
+ | 17 | ||
+ | कहाँ से लाएँ | ||
+ | चन्दनवन -मन ! | ||
+ | लपटें घेरे। | ||
+ | 18 | ||
+ | अश्रु से सींचे | ||
+ | महाकाव्य के पन्ने | ||
+ | रच दी नारी । | ||
+ | 19 | ||
+ | मन नहीं बाँचा | ||
+ | अन्धे असुर बने | ||
+ | रक्त -पिपासु । | ||
+ | 20 | ||
+ | दर्द जो पीते | ||
+ | व्यथित के मन का | ||
+ | सुधा न माँगे। | ||
</poem> | </poem> |
03:58, 10 अगस्त 2018 का अवतरण
11
मुस्कानें मरी
हँसी गले में फँसी
बधिक -पाश
12
कटे न पाश
खुशियाँ हुई कैद
पंख भी कटे।
13
प्राण हुए हैं
अब बोझ -से भारी
चले भी आओ।
14
कैसा मौसम!
झुलसी हैं ऋचाएँ
असुर हँसें।
15
उर -पाँखुरी
झेले पाषाण -वर्षा
अस्तित्व मिटे।
16
ईर्ष्या सर्पिणी
फुत्कारे अहर्निश
झुलसे मन।
17
कहाँ से लाएँ
चन्दनवन -मन !
लपटें घेरे।
18
अश्रु से सींचे
महाकाव्य के पन्ने
रच दी नारी ।
19
मन नहीं बाँचा
अन्धे असुर बने
रक्त -पिपासु ।
20
दर्द जो पीते
व्यथित के मन का
सुधा न माँगे।