भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हम याद न आएँगे(माहिया) /रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('Category:हाइकु <poem> 42 अब तक दु:ख झेला है छोड़ नहीं जाना मन न...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' | ||
+ | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | |||
42 | 42 | ||
अब तक दु:ख झेला है | अब तक दु:ख झेला है | ||
पंक्ति 50: | पंक्ति 53: | ||
पर इतना बोलो- | पर इतना बोलो- | ||
तुमको कब पाएँगे ? | तुमको कब पाएँगे ? | ||
− | <poem> | + | </poem> |
08:57, 10 अगस्त 2018 के समय का अवतरण
42
अब तक दु:ख झेला है
छोड़ नहीं जाना
मन निपट अकेला है ।
43
यूँ मीत अनेक रहे
मन को जो समझे
बस तुम ही एक रहे ।
44
हम याद न आएँगे
जिस दिन खोजोगे
फिर मिल ना पाएँगे ।
45
तुम हमसे दूर हुए
जितने सपने थे
सब चकनाचूर हुए ।
46
उनको सन्ताप हुआ
अनजाने हमसे
लगता था पाप हुआ ।
47
बस्ती में देर हुई
पथ है अनजाना
उम्मीदें ढेर हुई ।
48
हमको सब छोड़ गए
रुकता कौन यहाँ !
तुम नाता तोड़ गए ।
49
आवाज़ नहीं सुनते
यार हुए बहरे
अब अवगुण ही गुनते ।
50
घर-द्वार सभी छूटा
सपनों-सा पाला
संसार यहाँ लूटा ।
51
आँखों में आ घिरता
चन्दा -सा माथा
अब सपनों में तिरता ।
52
भावों में पलते हो
बस्ती के दीपक !
रजनी भर जलते हो ।
53
सागर तर जाएँगे
पर इतना बोलो-
तुमको कब पाएँगे ?