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"झीलें है सूखी / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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+ | कट गए जंगल | ||
+ | न जाने कहाँ | ||
+ | दुबकी जलधारा | ||
+ | खग-मृग भटके. | ||
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+ | झीलें है सूखी | ||
+ | मिला दाना न पानी | ||
+ | चिड़िया है भटकी | ||
+ | आँखें हैं नम | ||
+ | लुट गया आँगन | ||
+ | साँसें भी हैं अटकी। | ||
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+ | घाटी भिगोते | ||
+ | रहे घन जितने | ||
+ | वे परदेस गए | ||
+ | रूठ गए वे | ||
+ | निर्मोही प्रीतम-से | ||
+ | हुए कहीं ओझल। | ||
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+ | छाती चूर की | ||
+ | चट्टानों की भी ऐसे | ||
+ | पीड़ा दहल गई. | ||
+ | विलाप करे | ||
+ | दर-दर जा छाया | ||
+ | गोद हो गई सूनी। | ||
+ | 51 | ||
+ | पीड़ा थी भारी | ||
+ | तुम खिलखिलाई | ||
+ | फिर फूटी रुलाई | ||
+ | न रोके रुकी | ||
+ | बरसाती नदी-सी | ||
+ | धैर्य-तटबंध टूटे। | ||
+ | (13-8-18) | ||
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21:46, 17 अगस्त 2018 के समय का अवतरण
46
बेरुखी तोड़े
सारे प्यारे सम्बन्ध
जीवन-अनुबन्ध,
जब अपने
चोट दे मुस्कुराएँ
किसे दर्द बताएँ?
47
तपती शिला
निर्वसन पहाड़
कट गए जंगल
न जाने कहाँ
दुबकी जलधारा
खग-मृग भटके.
48
झीलें है सूखी
मिला दाना न पानी
चिड़िया है भटकी
आँखें हैं नम
लुट गया आँगन
साँसें भी हैं अटकी।
49
घाटी भिगोते
रहे घन जितने
वे परदेस गए
रूठ गए वे
निर्मोही प्रीतम-से
हुए कहीं ओझल।
50
छाती चूर की
चट्टानों की भी ऐसे
पीड़ा दहल गई.
विलाप करे
दर-दर जा छाया
गोद हो गई सूनी।
51
पीड़ा थी भारी
तुम खिलखिलाई
फिर फूटी रुलाई
न रोके रुकी
बरसाती नदी-सी
धैर्य-तटबंध टूटे।
(13-8-18)