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"आपसे मिले (हाइकु) / कमलेश भट्ट 'कमल'" के अवतरणों में अंतर
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+ | रातों की लम्बाई भी | ||
+ | गहरी नींद । | ||
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+ | छीन ही लिया | ||
+ | नदी का नदीपन | ||
+ | प्यासे बाँधों ने । | ||
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+ | रिश्तों से ज्यादा | ||
+ | तनाव बसते है | ||
+ | घरों में अब ! | ||
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+ | युग-युगों से | ||
+ | सोए पड़े पहाड़ | ||
+ | जागेंगे कब ? | ||
+ | 8 | ||
+ | गाँवों से लाता | ||
+ | शुद्ध आक्सीजन भी | ||
+ | वश न चला । | ||
+ | 9 | ||
+ | भीड़ तो बढ़ी | ||
+ | विरल हो चले हैं | ||
+ | रिश्ते परंतु । | ||
+ | 10 | ||
+ | रात होते ही | ||
+ | गोलबन्द हो गये | ||
+ | चाँद-सितारे । | ||
+ | 11 | ||
+ | घिर गया है | ||
+ | विषैली लताओं से | ||
+ | जीवन- वृक्ष । | ||
+ | 12 | ||
+ | बुझते हुए | ||
+ | पल भर को सही | ||
+ | लड़ी थी लौ भी । | ||
+ | 13 | ||
+ | मैं नहीं हूँ मैं | ||
+ | तुम भी कहाँ तुम | ||
+ | सब मुखौटॆ । | ||
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02:19, 21 अगस्त 2018 का अवतरण
(हाइकु)
1
प्रीति, हाँ प्रीति
दुनिया में सुख की
एक ही रीति ।
2
आप से मिले
तो लगा क्या मिलना
किसी और से !
3
ढूँढ़ता रहा
खुद को दिन रात
ढूँढ़ न पाया !
4
छोटा कर दे
रातों की लम्बाई भी
गहरी नींद ।
5
छीन ही लिया
नदी का नदीपन
प्यासे बाँधों ने ।
6
रिश्तों से ज्यादा
तनाव बसते है
घरों में अब !
7
युग-युगों से
सोए पड़े पहाड़
जागेंगे कब ?
8
गाँवों से लाता
शुद्ध आक्सीजन भी
वश न चला ।
9
भीड़ तो बढ़ी
विरल हो चले हैं
रिश्ते परंतु ।
10
रात होते ही
गोलबन्द हो गये
चाँद-सितारे ।
11
घिर गया है
विषैली लताओं से
जीवन- वृक्ष ।
12
बुझते हुए
पल भर को सही
लड़ी थी लौ भी ।
13
मैं नहीं हूँ मैं
तुम भी कहाँ तुम
सब मुखौटॆ ।