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"हो! गुरू नै ऐसा ज्ञान सिखाया, मनै खोल सभा म्य गाया / ललित कुमार" के अवतरणों में अंतर

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श्री लख्मीचंद प्रश्नावली व ललित कुमार उतरावली रचना-

प्र. - हो गुरु जी! मनै ऐसा ज्ञान सिखादे, कोए गावणीया-ऐ-गादे || टेक ||
उ. - हो गुरू नै! ऐसा ज्ञान सिखाया, मनै खोल सभा म्य गाया || टेक ||

प्र. - बेमाता की मात बतादे, सास बतादे गौरा की,
          शिव शंकर का गुरू बतादे, फेर बात करूँगा औरा की,
          अष्ट भुजा किसकी पुत्री थी, जिसनै करी सहायता चोराँ की,
          उस साधु का नाम बता, जिन्है करी सवारी मोराँ की,
          हो! जो पाणी म्य आग लगादे, कोए गावणीया-ऐ-गादे ||

उ. - बेमाता की मात गायत्री, अनसुईया सास गौरां की,
    शिव शंकर का गुरु अंगीरा, बात करु ईब औरां की,
    अष्ठभुजी थी ब्रहमा की पुत्री, जिसनै करी सहायता चोरां की,
    बालकनाथ होया ऐसा साधु, उन्है करी सवारी मोरां की,
    ज्ञान पाणी मै आग लगादे न्यूं वेदों नै बतलाया, मनै खोल सभा म्य गाया ||

प्र. - बाप के ब्याह मैं बण्यां बिचौला, वो लडका कित तै आया,
    कर राक्षस का भेष देवता, कौणसे युग मैं जिमण आया,
    अन्न-धन के भण्डार भरे थे, छिकया नही भूखा ठाया,
    जग परलो मैं कसर कड़ै, जब पीवण नै ना जल पाया,
    हो जो! बेल धर्म की लादे, कोए गावणीया-ऐ-गादे ||

उ. - बाप के ब्याह मैं भिष्म बिचोला, वो देवलोक तै आया,
    कर राक्षस का भेष गणेश, सतयुग मैं जिमण आया,
    कुबेर देव की हार होई, वो छिक्या नहीं भुखा ठाया,
    अगस्त मुनि नै पिये समुन्द्र, टोह्या भी ना जल पाया,
    दया कर बन्दे बेल धर्म की ला या, मनै खोल सभा म्य गाया ||

प्र. - उस लडके का नाम बतादे, जो ना माता कै पेट पड़या,
    मात-पिता ना संग के साथी, बेमाता नै नही घड़या,
    जन्म होते ही करी लडाई, ना कोए सन्मुख होया खड्या,
    जय-जयकार होण लगी जग मैं, देवलोक मैं जिकर छिड्या,
    हो मेरे! मन का भर्म मिटादे, कोए गावणीया-ऐ-गादे ||

उ. - उस लड़के का नाम गणेश, जो ना माता कै पेट पड़या,
    गौरां माँ नै करी घड़ाई, बेमाता नै नहीं घड़या,
    जन्म होवते करी लड़ाई, कोए ना सन्मुख होया खड़या,
    वा शिव सैना भी हरा देई, फेर देवलोक मैं जिकर छिड़या,
    ज्ञान बिन भ्रम नहीं मिट पाया, मनै खोल सभा म्य गाया ||

प्र. - अपने मन तैँ प्राण त्याग कै, फिर लडकी का चोला पाया,
    होई सवासण पडी जरूरत, पति मोहकै नै विवाह करवाया,
    उस लडकी का नाम बता, जिसनै एक पल मैं पुत्र जाया,
    पति की सेवा करण लागगी, पुत्र का सिर तरवाया,
    हो! श्री लखमीचनद नै समझादे, कोए गावणीया-ऐ-गादे ||

उ. - दक्ष कै त्यागे प्राण सति नै, हिमाचल घर जन्म धारया,
    होई सिवासण पड़ी जरुरुत, मन-मन मै शिव नाम पुकारया,
    पल मै गिरजा नै गणेश बनाया, गुरु जगदीश न्यू समझारया,
    वा न्हा-धोकै शिव सेवा मै बैठी, शिव नै सुत का शीश उतारया,
    ललित बुवाणी आले नै यो पूरा भेद बताया, मनै खोल सभा म्य गाया ||