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बाबी / गंग नहौन / निशाकर

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करैत छथि कोनो कबुला
हमर बाबी।
 
जेना मोन पड़ैछ
गामक माटिक सुगंध
बथुआक साग
बासमती धानक गंध
ओहिना बाबीक दतमनि।
 
ताकनहुँ नहि भेटत
एहि महानगरमे हमरा
दूध सन उज्जर
बाबीक केश।
 
आइ-काल्हि पड़ैछ
सम्बन्धमे दराड़ि
भाइ नहि होइछ भाइ
बाप-पित्ती धरि बिसरि जाइछ
मुदा एहनोमे
माइयोसँ बेसी
रखैत छथि खियाल
हमर बाबी।
 
हमरा फिकिर अछि
कोना बचत
विद्यापति पदावली
मिथिलाक मिठास
बाबीक कंठमे।
</poem>
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