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"मुजतरिब तमन्ना / प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'" के अवतरणों में अंतर

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19:21, 26 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण

सजाया है फरिश्तों ने दुल्हन जैसा बहारों को
ख़ुदा ने आने हाथों से संवारा है नज़ारों को

हवाएं मुस्कुराती हैं घटा भी नग़मे गाती है
महब्बत बूए-गुल बन कर फ़ज़ा में लहलहाती है

तमन्नाएं फ़लक पर रंग बन कर आज बिखरी हैं
समंदर ठहरा ठहरा है बहारें सहमी सहमी हैं

फ़लक का सतह पर सागर की रकसां है हसीं साया
है नीले लाल पीले रंग का ये दिलनशीं साया

चरागे-ज़ीस्त गो अंजान मद्धम है, मुसल्सल है
तुम्हारी याद मेरे दिल में पैहम है मुसल्सल है

खुशी के गीत गाते हैं परिंदे शाख़सारों पर
जुनूँ फिर कार फ़रमा है तुम्हारे ग़म के मारों पर

महब्बत दर्द बन कर मेरा दिल आबाद करती है
तमन्ना मुजतरिब हो कर तुम्हीं को याद करती है।