भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हम उन की बज़्मे-नाज़ में मुख़्तार भी नहीं / प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान' |अनुवा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

19:50, 26 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण

हम उन की बज़्मे-नाज़ में मुख्तार भी नहीं
मुख्तार दर किनार वहां बार भी नहीं

ये कौन सा मक़ामे-महब्बत है हमनशीं
ये क्या कि दिल में ख्वाहिशे-दीदार भी नहीं

मुझसे ख़ुदा के वास्ते नज़रें न फेरिये
मुझ बद नसीब कक कोई ग़मख़ार भी नहीं

वैसे तो ज़िन्दगी का बिताना मुहाल है
वो पास हों तो बात ये दुश्वार भी नहीं

शब हो चुकी तमाम वो आये नहीं अभी
अंजान उनके आने के आसार भी नहीं।