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"उठ के पहलू से वो मेरे क्या गया / प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'" के अवतरणों में अंतर
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उठ के पहलू से वो मेरे क्या गया
दिल की दुनिया पर अंधेरा छा गया
गाहे गाहे मुझको ग़म मिलते रहे
रफ़्ता रफ़्ता दर्दे-दिल बढ़ता गया
बरसरे बाली सितमगर आ गया
चौधवीं का चांद भी शर्मा गया
ज़िन्दगी बेबस भी है मजबूर भी
ज़िन्दगी से मेरा दिल घबरा गया
ज़िन्दगी से प्यार था 'अंजान' जब
हो गया है वक़्त वो आया गया।