भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हम दोस्ती एहसान वफ़ा भूल गए हैं / पयाम सईदी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKCatGhazal}} {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= पयाम सईदी |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
09:13, 27 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण
हम दोस्ती एहसान वफ़ा भूल गए हैं
ज़िंदा तो है जीने की अदा भूल गए हैं
ख़ुशबू जो लुटाती है मसलते हैं उसी को
एहसान का बदला यही मिलता है कली को
एहसान तो लेते है, सिला भूल गए हैं
करते है मोहब्बत का और एहसान का सौदा
मतलब के लिए करते है ईमान का सौदा
डर मौत का और ख़ौफ़-ऐ-ख़ुदा भूल गए हैं
अब मोम पिघल कर कोई पत्थर नही होता
अब कोई भी क़ुर्बान किसी पर नही होता
यूँ भटकते है मंज़िल का पता भूल गए हैं