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"ख़ुद को तू आईने में नज़रिया बदल के देख / अजय अज्ञात" के अवतरणों में अंतर

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08:43, 30 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण

ख़ुद को तू आईने में नज़रिया बदल के देख
गर हो सके तो जिस्म से बाहर निकल के देख

ख़तरों से खेलने का अगर शौक़ है तुझे
आँखों पे पट्टी बाँध के रस्सी पे चल के देख

दुनिया तुझे बिठाएगी पलकों पे एक दिन
जो भी बुरी है तुझ में वो आदत बदल के देख

मिट कर भी छोड़ जाएगी ये अपनी रंगो-बू
पत्ती हिना की अपनी हथेली पे मल के देख

सबके कहाँ नसीब में होती बुलंदियाँ
ऐ झोपड़ी तू ख़्वाब न ऊँचे महल के देख

हर इक क़दम पे आएंगी दुश्वारियाँ यहाँ
‘अज्ञात’ राहे इश्क़ पे चलना सँभल के देख